Book Title: Jivan ka Utkarsh
Author(s): Chitrabhanu
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 140
________________ ११४ जीवन का उत्कर्ष करते-करते आपने क्या एकत्रित किया है? आपने दूसरों की भावनात्मक समस्याओं को अपने सिर पर ले लिया है या फिर दूसरों को अपनी समस्याओं के लिए कोसा है। अब क्या रात भर आप इन समस्याओं से जूझते रहेंगे? यदि हाँ, तो यह सूचित करता है कि आपको दुःख पालने का व्यसन है। निष्ठावान साधक गहराई तक उतरता है। नकारात्मक कंपनों या व्यसनों को छोड़ने के लिए वह पूछता है, 'क्या लोग सचमुच मुझे दुःखी बना रहे हैं? या मैं उनके कंपनों को अपने कंधों पर इसलिए ले रहा हूँ क्योंकि यह मेरा व्यसन बन गया है? यदि मैं ही अपने दुःखों का कारण हूँ, तो मुझे ऐसा होने से रोकना चाहिए। मैं अपने व्यसनों को छोड़ना चाहता हूँ।' अब आपके अंतर्मन में एक नई समझ का उदय होता है। जब आप इस स्थिति में पहुँच जाते हैं, जो भी आपको विचलित करता है, वह आपका शिक्षक बन जाता है। जो भी आपको दुःख, पीड़ा, गुस्सा या ईर्ष्या देता है, या आपके अहम् को बढ़ाता है, वह आपका शिक्षक बन जाता है। क्यों? क्योंकि वह आपको किसी ऐसे व्यसन की जानकारी दे रहा है जो आपमें कहीं दबा पड़ा था। यह छिपा व्यसन बाहर आ गया है। इसलिए आप कहते हैं, 'धन्यवाद। यह अच्छा ही हुआ कि आपने मेरे इस व्यसन के प्रति मुझे चेता दिया। अन्यथा मुझे इसका पता ही नहीं चलता।' जब डाक्टर कहता है कि आपके शरीर में एक फोड़ा है, तो आप क्या करते हैं? क्या आप कहते हैं, 'कैसे बुरे आदमी हो तुम, जो मुझे इसकी जानकारी दे रहे हो?' नहीं! आप कहते हैं, 'मुझे इसकी जानकारी देने के लिए धन्यवाद। कृपया जाँच कीजिए।' आप डाक्टर से जाँच कराते हैं और इस काम के लिए उसका भुगतान भी करते हैं। इस तरह वह समय पर आपको एक शारीरिक बीमारी की सूचना दे देता है। अगर आपके शरीर में फोड़ा है, या आपके दांतों में दर्द है या आपको किसी विषाणु की छूत लग गई है, तो आप अपने आपसे नफरत नहीं करते हैं। आप कहते हैं, 'मुझमें कोई गड़बड़ी है या मैं किसी अस्वास्थ्यकर वस्तु के संपर्क में आ गया हूँ। इसीलिए मुझमें यह रोग प्रकट हुआ है। यह अधिक गंभीर रूप ले ले, इससे पहले इलाज़ करवा लेता हूँ।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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