Book Title: Jivan ka Utkarsh
Author(s): Chitrabhanu
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 159
________________ एकादश बोधि दुर्लभ भावना विरल अवसर मन एक सीढ़ी है। यदि हम अभिज्ञ हैं, वह हमें ऊपर की ओर ले जा सकती है। यदि हम अनभिज्ञ हैं, तो वह हमें गिरा सकती है। इस सीढ़ी में ये दोनों ही संभावनाएँ हैं सहायक बनने की या अवरोध करने की । अभिज्ञता की अवस्था में, हमारा मन एक सुंदर उपकरण है। वह सत्य को प्राप्त करके उसे प्रेषित कर सकता है। वह हमें प्रेरित करके ऊँचा उठा सकता है। किंतु अपनी अपरिष्कृत, अनभिज्ञ अवस्था में, वह हमारे विरुद्ध काम करता है। वह हमें छलकर विश्वास दिला सकता है कि जो हम चाहते हैं, वही सही है, जबकि वास्तव में ऐसा नहीं है। हम उसकी आड़ में स्वयं को भ्रमित करते हैं कि हम जो कर रहे हैं, वह गलत नहीं है, भले वह गलत ही हो। 1 - जब कोई व्यक्ति मात्र अपनी बुद्धि पर निर्भर रहता है, वह नहीं जान पाता कि वह उठ रहा है या गिर रहा है। वह बता नहीं पाता क्योंकि वह बुद्धि के पूर्वाग्रहों से ऊपर नहीं उठता। केवल बुद्धि को ही निर्णायक बनाकर, वह अन्याय को भी सही ठहरा सकता है। जो वास्तव में पतन है, उसे भी वह उत्थान समझ बैठता है । Jain Education International उदाहरण के लिए, एक युवक को सप्ताह के अंत में वेतन मिला और वह तीन सौ डॉलर जेब में डालकर घर की ओर चला । लापरवाही से उसका बटुआ गिर गया और उसने नहीं देखा। उसके पीछे चल रहे व्यक्ति ने देख लिया। उसने बटुआ उठाया और उसे खोलकर देखा, उसमें पैसे थे। वह भला आदमी था, अतः मन में पहला खयाल यही आया कि इसे लौटा दूँ। उसके मन में कल्पना उठी कि वह दौड़कर उस युवक के पीछे जा रहा है, उसे झिंझोड़कर डाँट रहा है, 'नादान युवक ! क्या तुम्हें अपने पैसे की रक्षा करना भी नहीं आता? यह लो !' लेकिन तभी एक अन्य विचार श्रृंखला उसके मन में उठी, 'कई दिनों से मैं बेरोज़गार हूँ। मैंने सुना है कि भगवान उनकी मदद करता है जो स्वयं अपनी मदद करते हैं! वह कई अनजान तरीकों से हमारी मदद करता For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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