________________
१५३
हमारी प्रकृति की वृत्ति आलोक में लाएँ और कहें, 'नहीं, यह मेरे लिए अच्छा नहीं है। जब तक मैं इसे अपने शरीर में घुसने नहीं दूं, तब तक मुझमें शक्ति बनी रहेगी। एक बार इसे अपने रक्त-प्रवाह में डाल लूँ, यह मुझ पर हावी हो जाएगा।'
इसलिए धर्म आपको ऊँचा उठाने वाला तत्त्व है। ऐसे क्षण होंगे जब आप कगार पर खड़े होंगे, दुविधा में होंगे कि करूँ या ना करूँ? इन सूक्ष्म पलों में कौन आपकी रक्षा करता है? वहाँ कोई मित्र नहीं है। कोई बाहरी तत्व नहीं है। आप अकेले हैं। आपको तय करना है कि क्या करना है? यदि आपके अंदर जीवन के प्रति इस विश्वास की अनुभूति है, आप हर परिस्थिति में बलवान रहेंगे। आप स्वयं को वे कार्य करने से रोक देंगे जो आपको नुकसान पहुंचाते हैं, या आपको स्वयं से दूर ले जाते हैं। यदि आप ऐसे क्षणों में स्वयं को बचा सकें, तो आप हमेशा के लिए बचे रहेंगे।
धर्म का तीसरा अर्थ सत्य है। जब आप अपने अंदर के सत्य को खोजकर उसके अनुसार जीने लगेंगे, तो वह आपके लिए हर माप की कसौटी बन जाएगा। यदि कोई कार्य सत्य के अनुरूप है, तो आप उसे करेंगे, यदि नहीं, तो उसे नहीं करेंगे। यह औचित्य सिद्ध करने का बहाना नहीं है; यह अपनी आंतरिक कसौटी के अनुरूप कार्य करना है। अब सत्य आपका स्थायी आंतरिक साथी बन जाता है।
जब आप इसे अपने अंदर रखते हैं, तब आपको कोई भय नहीं सताता। जब आप भयरहित हैं, तो आपकी ऊर्जा स्वाभाविक रूप से बहती है। असत्य से ऊर्जा नष्ट हो जाती है। जब आप झूठे हों, तो आप अस्थिर हो जाते हैं, और आपकी ऊर्जा मंद हो जाती है। शरीर काँपने लगता है; वह अस्वाभाविक हो जाता है। धर्म के साथ आप संसार में सहजता से विचरण कर सकते हैं, पकड़े जाने के भय से मुक्त, क्योंकि आप सत्य में जी रहे हैं। संपूर्ण विश्व आपके लिए हाज़िर हो जाता है। संपूर्ण विश्व आपका गृह है। जिनसे भी आप मिलेंगे, वे आपसे प्रेम करने लगेंगे। आपको छिपने की आवश्यकता नहीं है। आप दूसरों के अभिमतों और कसौटियों के अनुसार संसार को नहीं देखेंगे। आपकी कसौटी होगी आंतरिक सत्य, आंतरिक विश्वसनीयता।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org