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जीवन का उत्कर्ष
धीरे प्रवेश करते हैं और आप सोचने लगते हैं, 'अरे, एक या दो गिलास ही तो है,' पर यह पेय अंततः पूरे मनुष्य को पी जाता है। इसी को शराबखोरी कहते हैं। नशीले पदार्थ भी इसी तरह पूरे शरीर पर हावी हो जाते हैं। यौन संबंध की आसक्ति में भी एक प्रकार का रासायनिक प्रभाव निहित होता है। यदि आपका सहयोगी नकारात्मकता से भरा हो और आपकी वृद्धि में पूर्णतः बाधा डालता हो, फिर भी इस रासायनिक प्रभाव के कारण आप उस संबंध को उचित ठहराएँगे । व्यक्ति इन शारीरिक और भावनात्मक बंधनों से मुक्त नहीं होता । रसायनों की माँग इतनी प्रबल होती है कि सभी आध्यात्मिक विचार हवा में तिनके के समान उड़ जाएँगे।
इसीलिए इस संसार में इतनी पीड़ा, दुःख और संताप है। इसीलिए यहाँ इतने सारे अस्पताल और पागलखाने, इतने सारे नशाखोर और शराबखोर हैं। वे जीवन की एक सीढ़ी चूक गए हैं। अंततः उन्हें किसी संस्था में भर्ती करा दिया जाता है क्योंकि वे स्वयं पर नियंत्रण नहीं रख पाते।
ये व्यसन जन्म से नहीं है। ये जीवन में बाद में आते हैं। ये कमज़ोरी के एक पल में शुरू होते हैं और खून में घुस जाते हैं। यदि आप दीर्घायु चाहते हैं, सुख और आरोग्य के साथ जीना चाहते हैं, तो आपको सावधानी बरतनी होगी।
कोई आपको आदेश नहीं दे रहा; आप ही स्वयं को आदेश दे रहे हैं। यह किसी और का जीवन नहीं है; खुद आपका जीवन है । कोई देव आपके जीवन को नियंत्रित नहीं कर रहा है, आप स्वयं ही कर रहे हैं। जो स्वयं को उठाना जानता हो, उसे किसी बाहरी नियंत्रण की आवश्यकता नहीं है। जब हम स्वयं के साथ हों, तब कोई भी हम पर हावी नहीं हो सकता। इस तरह हम सभी राजा और रानियाँ हैं।
धर्म भावना का अर्थ है अपने पक्ष में खड़ा होना। यह जानिए कि आप स्वयं के लिए ज़िम्मेदार हैं। यदि आप अपना खयाल नहीं रखेंगे, कोई और नहीं रखेगा। किसी को भी आपके जीवन को शासित करने का अधिकार नहीं है, यदि आप कानून या सौहार्द के विरुद्ध कोई काम न करें। अतः जब आपके नेत्र, नाक और जिह्वा मिष्ठान्न की माँग कर रहे हैं, और आपका मस्तिष्क आनंद - लोक की सैर के लिए तत्पर है, तब अपनी बुद्धि को आत्मा के
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