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जीवन का उत्कर्ष आसमान में हैं और आपने अपना जीवन उसके हाथों में सौंप दिया है। इस तरह परिष्कृत किया हुआ तेल हवाईजहाज़ उड़ाने के लिए उपयुक्त ईंधन है।
इसी तरह यह मन एवं बुद्धि, अपने अपरिष्कृत रूप में खतरनाक हो सकते है। यहाँ हम उसे परिष्कृत करना सीख रहे हैं। इसमें समय लगेगा। हम उसे त्यागना नहीं चाहते, उसका बहिष्कार नहीं करना चाहते, उसे नष्ट नहीं करना चाहते। वह बहुत मूल्यवान है। ज़रा सोचिए, हमारा मन कितना शक्तिशाली है - वह सैकड़ों लोगों को एक ही हवाईजहाज़ में बिठाकर आसमान की सैर करा सकता है। वह क्या है जो हवाईजहाज़ को उठा रहा है? वह स्वयं हवाईजहाज़ नहीं है, वह मानवीय मन है। इस करिश्मे को संभव बनाया है मानवीय मन ने, यदि मन न होता तो हवाईजहाज़ नहीं होता, वह आसमान में नहीं उड़ पाता। किसी पत्थर को हवा में फेंककर देखिए; वह तुरंत ही नीचे आ जाएगा। एक हलका सा पंख भी आसमान में नहीं टिक पाता। यहाँ सैकड़ों टन का हवाईजहाज़ चौदह घंटे तक आसमान में उड़ता ही रहता है ! और हम सब उस पर विश्वास करते हैं। इस विश्वास का आधार क्या है? वह जड़ हवाईजहाज़ नहीं, बल्कि मानवीय मन है जिसने इस अद्भुत मशीन को बनाया है, और वह मन ही है जो उसे उड़ा रहा है।
आपका जीवन एक हवाई जहाज़ से ज़्यादा कीमती है। आप किसी भी कीमत पर उसको नष्ट नहीं कर सकते। आप गतिहीन रहकर या मस्तिष्क को अपरिष्कृत रखकर उसे खराब नहीं कर सकते। उसे परिष्कृत करने में लग जाइए, वह आपकी ऊर्जा को शुद्ध कर जीवन में सौंदर्य और सामरस्य पैदा कर देगा, आपको विकास के पथ पर आगे ले जाएगा। बुद्धि को कैसे परिष्कृत करें? आपको प्रशिक्षण, जागरण और साधना का मार्ग अपनाना पड़ेगा। जैसे-जैसे आप मन को शुद्ध करते जाएँगे, मन में जमा ठोस तत्त्व धीरे-धीरे निकलता जाएगा और वह अधिक स्वच्छ और साफ हो जाएगा। आपमें जो स्वच्छ, सूक्ष्म और सुंदर है, वह बाहर आएगा; जब आप सूक्ष्म हो जाएँगे, आपके विचार भी पारदर्शी हो जाएँगे, वे स्थूल और अपरिष्कृत नहीं रहेंगे। वे आपको चारों ओर नहीं दौड़ाएँगे। वे आपको सही दिशा में ले जाएँगे।
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