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लोक का स्वरूप
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मित्रों की संगत का मज़ा नहीं लेना चाहिए? क्या कोई अच्छी गाड़ी या घर रखना गलत बात है?' ज्ञान आपसे यह नहीं कहता कि जीवन का मज़ा न लें। इसके विपरीत वह यही कहता है कि जीवन का आनंद लीजिए। केवल वह आपके रोने, आहें भरने, झूठ बोलने और मरने का विरोध करता है!
दरअसल, आप किसी भी वस्तु का मज़ा तभी ले सकते हैं जब आप उससे चिपके नहीं हैं, उससे बंधे नहीं हैं। जब आप निर्भरता के बोझ से झुके हुए नहीं हैं, तब आप वस्तुओं को उनके वास्तविक स्वरूप में देख सकते हैं। यहाँ जो भी वस्तु है, वह केवल उतने समय तक रहेगी जैसी उसकी प्रकृति है। इसलिए उसका मज़ा लीजिए, और जब उसे जाना है, जाने दीजिए। यही उसकी प्रकृति है - चले जाने की।
जब आप किसी फूल बेचने वाले के पास जाते हैं, क्या आप उसके साथ समझौता करते हैं? क्या आप उससे कीमत चुकाने के बदले में कहते हैं कि वह वादा करे कि फूल इतने दिनों तक ताज़े बने रहेंगे? नहीं, आप केवल सर्वोत्कृष्ट फूल चुनते हैं और वे तब तक ताज़े बने रहते हैं जितना उनके लिए स्वाभाविक है। बस इतना ही। जब वे मुरझा जाते हैं, तब आप क्या करते हैं? क्या आप रोते हैं? या आप यह सोचकर अपने मन को समझा लेते हैं कि, 'तीन दिनों तक इन्होंने कमरे को सुंदर बनाया और आल्हाद देने वाली सुगंध प्रदान की।'
प्रबुद्ध व्यक्ति यही तरीका अपनाते हैं। वस्तुएँ जैसी हैं, उन्हें वैसे ही देखने की। आप जानते हैं कि फूल मुरझा जाते हैं। इसके साथ-साथ आप फूलों के सौंदर्य और सुरभि को भी जानते हैं। आप दोनों को जानते हैं। अब आप दुःखी नहीं होते और खुशी के क्षणों का आनंद भी ले लेते हैं। यह सत्य जानते हुए कि फूल तो मुरझाएँगे ही, आप रोते हुए यह नहीं कहते, 'तीन दिनों बाद क्या होगा?' जब भी आप फूलों को देखते हैं, आनंदित हो उठते हैं। आप जानते हैं कि उनकी जीवंत उपस्थिति सभी को आनंदित करती है, भले ही वे आपके मित्र हों या पूर्ण अजनबी। इसलिए जब फूल
ताज़े हैं, तब आप उनके मुरझाने की प्रकृति पर ध्यान नहीं देते, यद्यपि .. अपनी दुहरी अभिज्ञता में आप जानते हैं कि वे मुरझा जाएँगे।
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