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विराम चिह्न की कला
१०७ अभिनय करना पड़ता है जो आप नहीं हैं। आपको हमेशा मुखौटा पहने रहना पड़ता है, अपना रूप छिपाना पड़ता है। इस छलावे को बनाए रखना आसान नहीं है। एक दिन आप नींद से उठेंगे और पाएँगे कि यह मुखौटा, यह सौंदर्य आपके पास नहीं है। इससे तो चिंतन करना बेहतर है कि किस तरह विराम लगाएँ और स्वयं को देखें, किस तरह वही रहें जो आप हैं।
जैसे-जैसे आप संवर का अभ्यास करेंगे, आप उसका उद्देश्य समझने लगेंगे। यह आपके आरोग्य के लिए है - आपके आध्यात्मिक आरोग्य के लिए। यदि स्वयं के शिखर तक चढ़ने की आपकी अभिलाषा खरी है, तो आप आंतरिक आरोग्य चाहेंगे। यह किसी को खुश करने के लिए या किसी को दिखाने के लिए नहीं होगा; यह होगा सिर्फ आपके अपने लिए। जिस तरह दांतों को स्वस्थ और स्वच्छ रखने के लिए आप मंजन करते हैं, उसी तरह आप अंत:करण की अशुद्धियों को शुद्ध करते हैं। जिस तरह ताज़गी के एहसास के लिए आप नहाते हैं, न कि दिखाने के लिए कि आपकी त्वचा कितनी कोमल है उसी तरह आपको अपने मन के पोरों को साफ करना चाहिए ताकि आप स्पष्ट रूप से सोच सकें, बिना किसी विकृति के। महान से महान व्यक्ति भी आरोग्य के लिए साधना करते हैं। इस तरह साधना करने पर बाहरी बैसाखियों की कोई आवश्यकता नहीं रहती। साधक कोई भी अस्थायी वस्तु नहीं चाहता; उसे केवल वह अंतर्दृष्टि चाहिए जो चिरस्थायी होती है।
इसलिए जब क्रोध, अहंकार, माया या लोभ का तूफान आपके अंत:करण पर छानेवाला हो, अपने सामने 'संवर' शब्द को रख लें। अपने आपसे कहें, 'नहीं, मुझे रुकना चाहिए। मैं चुप रहूँ, प्रतिक्रिया नहीं करूँ, क्रूर नहीं बनूं।' नकारात्मक कंपनों और स्वयं के बीच में दूरी बनाए रखकर आप उन कंपनों को परावर्तित कर सकते हैं। आपकी चिरस्थायी जागरूकता के प्रकाश से वे भाप बनकर उड़ जाएंगे। इस तरह आप अपने अत:करण के निर्मल जल में कर्मों के अंतःप्रवाह को रोक सकेंगे। आप अंतःकरण की गहराई तक देख सकेंगे और अवशिष्ट को दूर कर सकेंगे।
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