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विराम चिह्न की कला इसलिए जब क्रोध आए, तब इन तीन चरणों का पालन करें। पहले, अपने भाव को पहचानिए। ऐसी क्या अपेक्षा थी जिसने आपके शरीर में यह भाव पैदा किए, उष्ण ऊर्जा का यह जमाव? दूसरे, इस ऊर्जा को तब तक अंदर ही रखिए जब तक कि आप अपना संतुलन पुनः प्राप्त न कर लें। तब तक अपने आपको बोलने की अनुमति मत दें। तीसरे, जब आप फिर से शांत हो जाएँ, उस व्यक्ति को बताएं कि किस बात ने आपको दुःखी किया, आपकी भावनाओं को क्यों ठेस पहुंची। यदि वह व्यक्ति संवेदनशील होगा, तो आपके चुनिंदा सौम्य शब्द उसके
अंतःकरण पर जादू करने लगेंगे। और यदि वह आपकी बात नहीं समझ सकता, तो चिल्लाने का भी उस पर कोई असर नहीं होने वाला है।
दूसरा तूफान मान यानी अहंकार का तूफान है। जब अहंकार आपके अहम् को गुब्बारे की तरह फुला देता है और आप कह उठते हैं, 'मैं उस व्यक्ति से भी बड़ा बनूंगा, तब इसके क्रूर पहलू पर ध्यान दीजिए। अहम् चाहता है कि आप उस व्यक्ति को पीछे छोड़कर उसमें हीनता की भावना भर दें। यदि आप क्रूर न होते, तो आप ऐसा कुछ न करते जो दूसरे को आपसे छोटा महसूस कराए। यह भीतरी क्रूरता है क्योंकि आप अपने आप से अनभिज्ञ हैं, अपरिचित हैं।
हमें प्रयत्न करना चाहिए कि दूसरे लोग स्वाभाविक महसूस करें। इस बात को अच्छी तरह समझ लें कि जो वस्तुएँ आपके पास हैं, वे दूसरों के साथ बांटने के लिए हैं, शांति के लिए, सहूलियत के लिए, संप्रेषण के लिए हैं; वे दूसरों पर रौब जमाने या भेद-भाव पैदा करने के लिए नहीं हैं। समझने की कोशिश कीजिए कि वस्तुओं के प्रति आपके दिल में क्या भाव है। वस्तुएँ अपने आपमें महत्वहीन हैं; उनके प्रति आपका भाव ही महत्वपूर्ण है। अपने आपसे पूछिए, 'क्या मैं कोई खेल खेल रहा हूँ? क्या मैं लोगों के साथ हूँ या उनसे ऊँचा बनने की कोशिश कर रहा हूँ?' लोगों के साथ रहना उत्तम है; उनके सामने ऊँचा बनने की कोशिश अज्ञानता का सूचक है।
अहंकार या अहम् आत्म-सम्मान नहीं है। अहम् संपूर्ण मस्तिष्क पर .. हावी होकर व्यवहार को नियंत्रित करने लगता है। आत्म-सम्मान आंतरिक
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