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जीवन का उत्कर्ष या भाषा का प्रतिबंध नहीं है। हम सब एक भाषा बोल सकते हैं - हृदय की, नज़र की और भावना की।
संवर का अर्थ है आश्रव के प्रवाह को रोकना। पहले हमने आश्रव पर ध्यान किया, यह जानने के लिए कि उसका प्रवाह किससे बनता है, कहाँ से आता है - बाहर से या अंदर से। जैसे ही हम समझ जाएँगे कि वह कैसे काम करता है, हम उसे रोक सकते हैं।
___जब तूफान आनेवाला है, और रेडियो पर आपको सुनाई दे कि वह काफी विध्वंसकारी होगा, तो आप क्या करेंगे? क्या आप सतर्क नहीं हो जाएँगे और सावधानी नहीं बरतेंगे? क्या आप उठकर खिड़की-दरवाज़े बंद नहीं करेंगे, बाहर पड़ी चीजों को समेटकर घर के अंदर नहीं लाएँगे? यदि आप खिड़कियाँ बंद नहीं करेंगे, तो क्या होगा? घर धूल, मिट्टी और पानी से भर जाएगा। ___संवर का मतलब है तूफान के आगमन पर खिड़कियाँ बंद करना। जीवन में ये तूफान कषाय हैं - क्रोध, मान, माया और लोभ। क्रोध एक तूफान है। जब वह आता है, तब पहले हमारे मन की शांति भंग करता है। फिर वह उन सब चीजों को नष्ट कर देता है जो आसपास हैं। क्रोध विरूपित करता है, अंधा बना देता है और दृष्टि को धूमिल करता है। जिस व्यक्ति का हृदय और आँखें गुस्से से जल रहे हैं, वह कितना कुरूप लगता है। उसे देखकर मुस्कुराइए और आप देखेंगे कि उससे आपकी यह मुस्कुराहट बरदाश्त नहीं होती। 'क्यों दांत निपोर रहे हो?' वह आप पर झल्ला पड़ेगा।
__ अगर आप गुस्से में हैं और आपका बच्चा रोता हुआ पास आकर पुकारता है, 'माँ', तो शायद आप उसे परे धकेलते हुए कह देंगे, 'जाओ यहाँ से'। आपका मित्र आपसे मिलने आएगा और दस वर्षों की मित्रता आप दस क्षणों में ही नष्ट कर डालेंगे। 'मैं तुमसे नफरत करता हूँ' - ये शब्द अंतःकरण पर बहुत गहरा प्रभाव डाल सकते हैं। इस प्रभाव को कैसे मिटाएँ? आप कह सकते हैं, 'मुझसे गलती हो गई, मुझे क्षमा कर दो,' पर इससे उन कटु शब्दों की चुभन नहीं जाती है। वे तीर के समान किसी के दिल में घुसते हैं और दिल को लहूलुहान कर देते हैं। पीड़ा और घाव ऐसे
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