________________
८९
कंपनों के अंतःप्रवाह पर चिंतन शायद आप बिगड़ उठे और कठोर शब्द कहने लगे। जिस व्यक्ति में अहम् हो, उसमें थोड़ा कपट होता ही है। अपने अहम् को चोट से बचाने के लिए वह कपट का सहारा लेता है। उस अहम् में दूसरों को अपने अधीन करने की और शक्तिशाली बनने की लालसा भी छिपी हुई है। और तो और, जब भी वह लालची व्यक्ति कुछ एकत्रित करता है, चाहे धन हो या ऊँचा पद, तब अगर कोई उसके मार्ग में रुकावट डाले, तो उसे क्रोध आने लगता है। इस तरह ये चार, जिन्हें कषाय कहते हैं, वर्षा की ताज़ी बौछार के बजाय नाली के मैले पानी के लिए द्वार खोल देते हैं। सबसे पहले इस खुले द्वार को बंद करना होगा।
इसके बाद है एक और खुला द्वार या पाश, जिसे योग कहते हैं। यहाँ इसका एक विशिष्ट अर्थ है। यह वह योग है जो मन, वाणी और शरीर को प्रिय, ललचानेवाली, आकर्षक वस्तुओं के साथ युक्त करता है, यानी जोड़ता है। जब आप सजग नहीं रहते, तब इस तरह की वस्तुएँ आपको खींचती रहती हैं। उदाहरण के लिए, आप बाज़ार में किसी दुकान की खिड़की में एक कोट देखते हैं। आपकी नज़र उससे जुड़ जाती है और आपका मन उसे हासिल करने के उपाय सोचने लगता है। तब अगर आपके घरवाले आपको वह कोट खरीदने के लिए रुपये न दें, तो आप नाराज़ हो उठेगे, 'तुम मेरे लिए क्या करते हो? तुम तो उस सुंदर कोट को खरीदने में मेरी मदद भी नहीं कर रहे हो।'
आपकी सारी उर्जा उस कोट को खरीदने के लिए रुपये एकत्रित करने में लग जाती है। इससे सूचित होता है कि जब योग के द्वार खुले छोड़ दिए जाते हैं, तब इंद्रियाँ बिना किसी अभिज्ञता के किस तरह आकर्षक वस्तुओं के साथ जुड़ने लगती हैं।
तीसरा पाश है प्रमाद। यह हमारे चेतना के जल को मलिन करने के लिए तीन रूपों में आता है। सर्वप्रथम, वहाँ अनिश्चितता है। व्यक्ति असमंजस में रहता हुआ सभी दिशाओं में भटकता रहता है। ऐसा व्यक्ति स्वयं से अनभिज्ञ है, इसीलिए वह विपरीत दिशाओं में खींचा चला जाता है। उसका जीवन किसी उद्देश्यपूर्ण दिशा में नहीं चल रहा है। वह कुटिल जाल में फँसा हुआ है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org