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जीवन का उत्कर्ष
लिए? मैं दूसरों को प्रभावित क्यों करना चाहता हूँ? मैं अपने घर को मेजकुर्सियों की दुकान में क्यों बदल रहा हूँ?' अपनी सनक देख रहे हैं जब आपके पास कोई वस्तु होती है, तो आप उसका दिखावा करना चाहते हैं, और जब आपके पास वह नहीं होती, तो आपको लगता है कि यह आप पर ज्यादती है कि आपको वह वस्तु नहीं मिली है। दोनों ही मानसिक ग्रंथियां हैं; और दोनों ही आत्म-अज्ञान से जन्मी हैं।
जीवन स्वयं में मानसिक ग्रंथियों से मुक्त है, खींचने - धकेलने से मुक्त है। मगर इस संसार में जीना मुश्किल है, वन में रहना आसान है। यहाँ कितने ही व्यावसायिक विज्ञापन आप पर बरस रहे हैं। अतः आपमें से जो साधक शहरों में रह रहे हैं, उन्हें वन में चले गए लोगों से अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है। क्योंकि उनके लिए कोई बाहरी प्रलोभन नहीं हैं। लेकिन आपके लिए तो प्रलोभन ही प्रलोभन हैं और आप धीरे-धीरे उनमें संतुलन लाना सीख रहे हैं।
शायद लोग आपका मजाक उड़ाते हैं क्योंकि आप शाकाहारी हैं। वे आपको सिरफिरा कहते हैं और आप पर आलोचना के व्यंग्य बाण छोड़ते रहते हैं। वे आप पर एक कुदरती जीवन जीने के लिए, व्यभिचार न करने के लिए, शराब न पीने के लिए, या किसी मनोवैज्ञानिक के पास न जाने के लिए फब्तियां कसते हैं। उनके लिए असामान्य जीवन सामान्य हो जाता है। उदाहरण के तौर पर, वे इस बात को समझ नहीं पाते कि यौन परिचर्चाओं में जाकर वे आसक्तियों को बढ़ावा दे रहे हैं, भीतरी असंतोष, पीड़ा एवं मानसिक ग्रंथियां को बढ़ा रहे हैं और रिश्तों में बिखराव का मार्ग खुला छोड़ रहे हैं। लेकिन आप निष्ठावान साधक हैं। इन सब आलोचनाओं के बावजूद आप जो हैं, वही बने रहते हैं। आपमें भीतरी विश्वास की शक्ति है।
आपने जीवन की गहराइयों का अनुभव करने के लिए समय निकाला है। आपने साधना की है, कुछ ऐसा पाने के लिए जो स्थायी हो, टिकाऊ हो, जो आपमें भीतरी विश्वास जगाए। आप क्षणभंगुर चीज़ों से प्रभावित नहीं होते। जब हवा का तेज झोंका आता है, तो आप जानते हैं कि किस तरह अडिग रहकर इंतजार करें। यह वह कला है जो सिखाती है कि जब तूफान आए, तो अडिग कैसे रहें ताकि उसमें डूब न जाएँ ।
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