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जीवन का उत्कर्ष
इसलिए दिन भर अंदरूनी सम्मोहन को तोड़ने के प्रति सजग रहें। यह कभी न भूलें कि कोई भी बंधन इतना मजबूत नहीं होता कि वह संसार की वस्तु को स्थायी बना सके। यदि आपका संबंध गलत समझ पर आधारित है, तो वह बालू पर खड़े किए गए महल के समान है। जब बालू खिसकेगी, वह ढह जाएगा। यदि आप आत्मा को आत्मा के साथ, मनुष्य को मनुष्य के साथ मिलाएँगे, तब आपकी नींव मज़बूत बनेगी । दिन-रात इस बात पर ध्यान दें कि कैसे हमारी जागरूकता आत्मा से आकार की ओर, तथा आकार से आत्मा की ओर मुड़ती है। ध्यान दें कि जब आपका दृष्टिकोण बदलता है, तब आपकी भावनाओं में, आपकी चेतना में कैसा बदलाव आता है।
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अब ध्यान में लीन होते हुए अपने हृदय में एक मंदिर का दर्शन करें। इस मंदिर के भीतर एक गर्भगृह है जिसमें एक सुंदर प्रतिमा है। देखिए कि किस तरह यह प्रतिमा जो आपकी आत्मा ही है, मोमबत्ती रूपी आपके शरीर से जुड़ी हुई है । लौ और मोमबत्ती परस्पर जुड़े हुए हैं। वे मिलकर आपको उठाते हैं। वे मिलकर आपके विकास और उत्कर्ष को प्रकाशित करते हैं। चिंतन के बिंदु
मेरे भीतर ऊपर की ओर क्या बढ़ रहा है? वह सौंदर्य को, कुलीन को, दिव्यता को पाने के लिए मेरी आत्मा की खोज है, मेरी शुद्धता है।
मेरे अंदर नीचे की ओर क्या गल रहा है? यह वह गंदगी है जो सड़कर अपने घटकों में बिखर जाती है।
ध्यान की प्रक्रिया से मुझे अपने चित्त को सम्मोहन - मुक्त करना है। क्या मुझे ज्ञात है कि मेरे कर्म आत्मबोध से प्रेरित हैं अथवा किसी दूसरे के इशारे से ?
जो व्यक्ति जागरूक है, उसे कुछ भी बाँध नहीं सकता। वह संसार में रहता है, संसार के साथ है, लेकिन संसार का नहीं है।
मुझे एक प्रेम मंदिर बनकर रहने दो, एक पवित्र स्थल जहाँ से मैं संसार के सभी जीवधारियों को प्रकाश दूँगा ।
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