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दीपक की लौ
७९ से अवगत हो जाते हैं, तो उनसे थोड़ी दूरी बनाए रखते हैं। आप अपने आप से और अपने शरीर का निर्माण करनेवाले, निरंतर परिवर्तनशील तत्त्वों के बीच थोड़ी दूरी बनाए रखते हैं। आप अपने आप से और अपने मन में चक्कर काटनेवाले तत्त्वों के बीच दूरी बनाए रखते हैं।
जब आप इस अवस्था में पहुंच जाते हैं, तब आप अपने शरीर और मन के चिकित्सक बन जाएँगे। आप रोग निवारण की अपनी क्षमता से अवगत हो जाएँगे। जब आप चारों तत्त्वों - पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु - की प्रकृति को पहचान जाएँगे, आप अपने शरीर की ओर ध्यान देने लगेंगे, उसी तरह जैसे हम किसी कीमती मशीन की ओर देते हैं। तब आप देखेंगे कि कौन से तत्त्व की कमी है। आप उस तत्त्व की खोज करके अपने स्वास्थ्य को सुधार लेंगे।
जो व्यक्ति अपने शरीर से बंधा हुआ है, इस तरह का आत्मोपचार नहीं कर सकता। इसके लिए शरीर से दूरी बनाए रखना आवश्यक है। जब आप शरीर के सम्मोहन को तोड़ देंगे, तो आप उसे उसकी वास्तविकता में देख पाएँगे। आप उसे बिगाड़ना बंद कर देंगे और अपने आंतरिक स्वरूप से एकीकृत हो जाएंगे। इस तरह आप अपने भीतर स्थित अथाह ऊर्जा स्रोत से संपर्क साध सकते हैं और अपने स्वास्थ्य को ठीक कर सकते हैं।
___जब स्वयं के अंदर उस अंकुरण को, उस ऊर्ध्व-गत्यात्मक तत्त्व को देख लेंगे, तो आप संसार के साथ रहने लगेंगे, लेकिन उसके बनेंगे नहीं। इसी तरह आप अपने शरीर के साथ रहेंगे, लेकिन उससे निर्लिप्त होकर। शरीर वही है; उसके प्रति हमारा दृष्टिकोण जीवन में बदलाव लाता है। यह शरीर बंधन के लायक नहीं है, आपको उसका उपयोग अपनी जागरूकता को बढ़ाने के लिए एवं दूसरों के विकास में सहायक बनने के लिए करना चाहिए।
शरीर आनंद या भोग-विलास की वस्तु या तनाव से मुक्ति का साधन मात्र नहीं है, उसे ऐसा समझना तो उसका दुरुपयोग है। उसे संप्रेषण
और संगम का वाहन समझना उसका सदुपयोग है - सम्मान के साथ, परवाह के साथ। तब वह वास्तव में प्रेम मंदिर बन जाता है - एक पवित्र स्थल जिसमें आदर का अलाव संसार के समस्त जीवधारियों को प्रकाशित करता है।
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