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दीपक की लौ
'ओह, यह तो कुछ नहीं है! मल्ली ने इत्मीनान से कहा। 'जब मैंने सुना कि आप सब मेरा हाथ जीतने के लिए आ रहे हैं तो मैंने सोचा, 'इन सब का स्वागत कैसे करूँ? ये सब किससे शादी करना चाहते हैं?' मैं जानना चाहती थी, क्या ये सचमुच मुझसे शादी करना चाहते हैं या मेरे शरीर से?' इसलिए हर बार जब मैं भोजन करती, मेरे भोजन का एक ग्रास इस प्रतिमा के अंदर भी डाल देती। ऐसा करते हुए मात्र पंद्रह दिन ही हुए हैं, इतने में ही वे भोजन के कण सड़कर ऐसी दुर्गंध दे रहे हैं।'
एक तरफ मल्ली के अपूर्व सौंदर्य से राजाओं का होश उड़ गया, और दूसरी ओर दुर्गंध के कारण वे परेशान भी हो रहे थे। प्रिय और अप्रिय दोनों के इस आघात को वे झेल नहीं पा रहे थे! इस झमेले में वे सोचने लगे कि वे यहाँ आए ही क्यों?
फिर राजकुमारी मल्ली ने उनसे कहा, 'आइए, इस कमरे से बाहर कहीं चलते हैं। मेरे पास यहाँ बैठिए। आप छह लोग मेरी ओर क्यों आकर्षित हैं? क्या यह मात्र मेरे सौंदर्य के कारण है या कुछ और भी है? अब आप जान गए हैं कि सौंदर्य तो त्वचा की तरह बहुत ही छिछला होता है। आप इस शरीर के घटकों के सड़ने से पैदा होनेवाली दुर्गंध को सह चुके हैं और वह आपको बिलकुल ही पसंद नहीं आई। आपको यहाँ खींच लानेवाली कुछ और बात भी है। असल में इसी ने आपको यहाँ आकर्षित किया है, मेरे शरीर ने नहीं। आँखें बंद करें, ध्यान करें और अपने आप को देखें।'
निशब्दता के उस पल में उन सबके मन में एक झलक कौंध गई। उन्होंने देखा कि किसी पूर्व जीवन में वे सातों जन एक साथ रहे थे। वे सुखद जीवन व्यतीत कर रहे थे और उनमें आध्यात्मिक अभिरुचि भी थी। लेकिन वे सभी किसी मोह में जकड़े हुए थे जिसे वे समझ नहीं पा रहे थे। वह किसी प्रकार की बची हुई निर्भरता थी। इसके कारण उनमें से प्रत्येक को एक बार फिर जन्म लेना पड़ा। अन्यथा, उन्हें उसी जीवन में मुक्ति मिल गई होती।
जैसे ही उन्होंने यह झलक देखी, उन्हें मल्ली की बात तुरंत समझ में आ गई। मल्ली कह रही थी, 'हम सभी प्रकाश के मार्ग पर हैं, लेकिन हमारे
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