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जीवन का उत्कर्ष 'सभी राजाओं को ऐसा पत्र भेज दूं?' मल्ली के पिता ने आश्चर्य से पूछा।
हाँ,' मल्ली ने कहा, 'छहों को, लेकिन प्रत्येक राजा को यही लगे कि यह प्रस्ताव केवल उसे भेजा गया है। प्रत्येक राजा यही समझे कि केवल उसे ही बुलाया गया है!'
मल्ली की आँखों में विश्वास की लौ देखकर और उसकी वाणी की दृढ़ता को सुनकर राजा कुंभक समझ गए कि मल्ली सोच-समझकर ही यह बात कह रही है। इसलिए उसने उसके कहे अनुसार सभी छह राजाओं के पास गुप्त रूप से मल्ली का संदेश भिजवा दिया।
पंद्रह दिनों की अवधि बीत गई। अगली रात को छह के छह राजा मल्ली के द्वार पर आ पहुँचे। जब उन्होंने एक-दूसरे को देखा, उनके हृदय में ईर्ष्या की ज्वाला भड़क उठी। प्रत्येक राजा ने यही सोचा था कि केवल उसे ही निमंत्रण मिला है। प्रत्येक को अब अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए की गई मेहनत के निष्फल होने की, अर्थात् मल्ली को पत्नी के रूप में न मिल पाने की पीड़ा सताने लगी।
तभी राजकुमारी मल्ली ने द्वार खोल दिया। उसने सभी राजाओं को अपने कक्ष में आने के लिए कहा। वहाँ उन्हें मल्ली की एक सुंदर मूर्ति रखी हुई मिली। मूर्ति हूबहू मल्ली के जैसी थी। मूर्ति का कद भी मल्ली के जितना ही था और वह स्वर्ण की बनी हुई थी। वह इतनी आकर्षक थी कि उसे देखकर राजाओं की आँखें चकाचौंध हो गईं। वह मल्ली की शतप्रतिशत प्रतिमूर्ति थी और एकदम जीवंत लग रही थी।
इस मूर्ति के पास खड़े होकर राजकुमारी मल्ली ने राजाओं से कहा, 'आप सभी का स्वागत है! तो आप सभी यहाँ आ ही गए, क्यों?' राजाओं ने धीमे स्वर में 'हामी' भरी। मल्ली ने प्रतिमा के पीछे एक कुंजी को दबाया जिससे उसके ऊपर का ढक्कन खुल गया। अचानक इतनी तेज बदबू निकली कि सभी राजा परेशान हो गए। वे इस दुर्गंध को सहन न कर सके और पूछ बैठे, 'यह कैसी दुर्गंध है?'
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