Book Title: Jivan ka Utkarsh
Author(s): Chitrabhanu
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 43
________________ द्वितीय - अशरण भावना असुरक्षित संसार में स्वयं की सुरक्षा जिस तरह शरीर को पोषण की आवश्यकता है, उसी तरह मन के पोषण के लिए भी हमें भोजन की आवश्यकता है। जब हमारे मन को उसका पोषण, यानी शुद्ध और सकारात्मक विचार नहीं मिलते हैं, तब वह कमज़ोर बन जाता है। और जिस तरह एक कमज़ोर शरीर किसी भी बीमारी का शिकार हो सकता है, उसी तरह एक कमज़ोर मन भी किसी भी प्रभाव का शिकार बन सकता है। वह ग्रहणशील बन जाता है और जहाँ भी जाता है, वहाँ के प्रभाव का रंग ग्रहण कर लेता है। उसका अपना कोई विशिष्ट चिंतन नहीं रहता। एक कमज़ोर मन एक कमज़ोर शरीर से ज़्यादा हानिकारक है। अगर किसी का शरीर कमज़ोर है, तो वह नज़र में आता है। विटामिन, उपयुक्त भोजन एवं योगासनों के द्वारा वह व्यक्ति शरीर को सशक्त बना सकता है। मगर जब मन कमज़ोर हो जाता है, तब वह इतनी आसानी से नज़र में नहीं आता। अंतत: मन की शक्ति ही शरीर को सशक्त बनाने में सहायक है, और ये दोनों मिलकर आत्मा को उसकी यात्रा पर अग्रसर करते हैं। इसीलिए इन बारह भावनाओं का निरूपण किया गया है - आत्मा के सफर में तन और मन का उपयोग करने के लिए, ध्यान के माध्यम से जो नित्य है, उसे उजागर करने के लिए, जीवन को उसकी वास्तविकता में देखने के लिए। ध्यान का उपयोग अस्थायी वस्तुओं के लिए भी किया जा सकता है- धन संपत्ति पाने के लिए, सुखद संबंधों के लिए, कुशलता के एहसास के लिए। अगर आप यह भावनाएँ उन्हें देंगे जो सिर्फ 'अस्थायी' को चाहते हैं, तो वे उन्हें स्वीकार नहीं करेंगे। क्यों? क्योंकि वे गहराई में जाने के लिए तैयार नहीं हैं। उन्हें तो वही चाहिए जिसे वे तुरंत प्राप्त कर सकते हैं। हम शाश्वत की बात कर रहे हैं, दीर्घकाल तक बनी रहने वाली वस्तुओं की, जिसमें लोगों को अक्सर कोई रुचि नहीं है। जिनके अंदर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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