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जीवन का उत्कर्ष ज्ञानीजन जानते हैं कि झूठे और बाहरी आधार से जो सुरक्षा बनाई गई है, वह टिक नहीं सकती। इस तरह का आश्रय बहुत कमज़ोर है। जब आप फिर से खुले मैदान में निर्वस्त्र खड़े होंगे, सिर के ऊपर बिना किसी छत के, तब क्या करेंगे?
इसीलिए हम भावनाओं पर चिंतन करते हैं। हम अभिज्ञता से अपनी आंतरिक शक्ति बढ़ाते हैं। जिस तरह एक खिलाड़ी अपने स्नायुओं को वज़न उठाकर सशक्त बनाता है, उसी तरह हम खास औज़ारों के द्वारा अपनी आंतरिक शक्ति को बढ़ाते हैं। ये औज़ार हैं अनुप्रेक्षा, जिन्हें भावनाएँ भी कहते हैं, सार्थक शब्द और अंतर्दृष्टियाँ।
आप अपने आप को तैयार करते हैं कि अकेले कैसे खड़े रहें। जब आप अकेले खड़े रहना जान जाते हैं, तब आप पूर्ण रूप से एक हो जाते हैं। आपको इस पूर्ण-एकत्व का अर्थ जानने के लिए सिर्फ अपने अकेलेपन की गहराई में जाना है।
हर कोई ऐसा करने के लिए तैयार नहीं है। ये पहलू सिर्फ उन्हीं को दिए जाते हैं जो तैयार हैं। सत्य चकाचौंध करने वाला है। उसमें इतना तेज है कि कमज़ोर आँखें उसे झेल नहीं पाती। उसके तेज़ के आगे कमज़ोर आँखो वाले मुड़कर दिशा बदल लेते हैं या गहरे चश्मे से अपनी आँखों को ढक लेते हैं।
__ मगर ऐसे भी व्यक्ति हैं जो सत्य को देखना चाहते हैं। वे कहते हैं, 'हमें किसी भी हाल में सत्य को जानना है।' अंततः जो पहले कड़वा प्रतीत हो रहा था, वह मीठा शहद निकला। जैसे-जैसे आप अपनी आंतरिक शक्ति बढ़ाएँगे, तब बिना सहारे के भी नीचे नहीं लुढ़केंगे।
जो सत्य देखने को उत्सुक हैं, वे प्रेम और मोह के बीच के फर्क पर चिंतन करते हैं। चिंतन करते हुए वे देखते हैं कि मोह हमेशा किसी किन्हीं माँगों या शर्तों के साथ आता है। जो स्थिर खड़े रहना जानते हैं, वे इसे देख सकते हैं। अपनी अंतर्दृष्टि का उपयोग करके वे स्वयं से पूछते हैं, जिसे मैं प्रेम कहता हूँ, क्या वह सिर्फ सुंदर शब्दों में बँधा हुआ मोह है? जिससे मैं
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