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जीवन का उत्कर्ष
हम सभी एक अनंत सफर तय कर रहे हैं। क्या हमारे पास आगे की योजना है? अधिकांश लोग नहीं बता पाएँगे, मगर हम सभी जानते है कि हमें कहीं जाना है। यही संसार का चक्र है।
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हम कहाँ जाते हैं? हम उन स्थानों पर जाते हैं, उन लोगों के पास, उन परिस्थितियों की ओर जिन्हें हम अपने प्रेम, अपने संबंध और एक दूसरे के बीच के सेतु द्वारा बना रहे हैं। जिसकी सृष्टि हम आज कर रहे हैं, वह बाद में हमारे स्वागत के इंतज़ार में रहेगी। शायद यह बात असंगत लगे। मगर जब आप ध्यान के द्वारा अपनी अनंत अपरिमित आत्मा की गहराई में जाएँगे, आप अपने जीवन की खोज को छू लेंगे। वह आपका अदृश्य पथ बन जाएगा। वहाँ आपका स्वप्न साकार हो जाएगा। वह विकास की ओर आपका अनंत सफर बन जाएगा।
हर व्यक्ति एक एकाकी मुसाफिर है । साथ ही, वह संगति में भी है। हमारे पास दोनों हैं - एकाकीपन और संगति । विशेष नज़र से देखें तो एकत्व है, सामान्य नज़र से देखें तो बहुत्व है। एक नज़र से अदृश्य संसार है, दूसरी नज़र से दृश्यमान संसार है। दोनों गहराई से जुड़े हुए हैं, व्यक्तिगत स्तर और सार्वलौकिक स्तर पर एक साथ कार्यरत हैं, इस आत्मा को अपनी आखिरी मंज़िल तक पहुँचाने के लिए।
अब से आप संसार के साथ सार्वलौकिक स्तर पर काम करना शुरू कर सकते हैं। ध्यान दें कि आप व्यक्ति को व्यक्ति मानते हैं या वस्तु ! यह दैनिक अभ्यास है। आज से शुरू करें। स्वयं से पूछिए, 'मैं उस व्यक्ति को किस नज़र से देखता हूँ?' पहले एक मानसिक तस्वीर तैयार कीजिए। क्या आप उसे एकदम अपने समान देखते हैं? अगर यह सच है, तो स्वयं से कहिए, 'जो मुझे नहीं पसंद है, शायद उसे भी नहीं पसंद हो, इसलिए मुझे वैसा नहीं करना चाहिए। जो मैं चाहता हूँ, शायद उसे भी वही चाहिए। इसलिए मुझे उसके साथ बाँटकर रहना चाहिए, जीओ और जीने दो का व्यवहार । '
जब आप एकत्व की अनुभूति करोगे, तब आप अपनी मंज़िल जीत चुके हैं। जब आप उस एकत्व को नहीं देखते हैं, तब आप हमेशा दूसरों के कंधों पर रोते हुए उन पर निर्भर करते रहते हैं। अगर आपको रोने के
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