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जीवन का उत्कर्ष
चिंतन के बिंदु
एकत्व, मैं एक हूँ। मैं इस संसार में अकेले आया हूँ। मैं यहाँ से अकेले ही गमन करूँगा। मैं अकेले खड़े रहना जानता हूँ, बिना किसी व्यसन या अवलंबन के झुंड से अलग, अपनी आत्मा में निर्भय और
"
सशक्त ।
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सर्व- एकत्व के अर्थ को जानने के लिए मुझे सिर्फ अकेलेपन की गहराई में जाना होगा।
सभी इस संसार में इस एकत्व को जानने के लिए आए हैं, एक दूसरे के साथ व्यवहार का सेतु बनाने के लिए।
मुझे यह अभिज्ञता मिले कि हरेक प्राणी ज्योतिस्वरूप है, एक सजीव ज्वाला, स्वयं मैं भी । मुझे यह अनुभूति मिले कि आत्मा महिमामय एवं प्रबल है, जिससे मैं विश्वव्यापी हो जाऊँ।
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