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दीपक की लौ
७१ जीवन में घटनाएँ आती हैं, कंपनों का स्पंदन होता है, पूर्व कर्म चोट पहुँचाते हैं। अगर हम जागरूक नहीं हैं, तो इनकी वजह से हम डगमगा सकते हैं। लेकिन अगर हम जागरूक हैं, तो इन्हें चुनौती के रूप में स्वीकार करते हैं। हम अपने अंदर छिपी हुई अनंत शक्ति के स्रोत से उनका सामना करते हैं। हमें उस शक्ति को जानना चाहिए। कैसे जानें? जीवन के प्रति जागरूकता के द्वारा। जीवन के प्रति सम्मान से हमारी जागरूकता का निर्माण होना चाहिए। तत्पश्चात् सारी क्रियाएँ उस सम्मान की दिशा में गतिमान हो जाती हैं।
जो जागृत है, उसे कुछ भी बाँध नहीं सकता, अवरुद्ध नहीं कर सकता। काम करते हुए, सोते हुए, भोजन करते हुए, बातचीत करते हुए, आपको भान है कि आपकी प्रत्येक क्रिया सम्मान एवं प्रेम का प्रतीक है, अंतर के उस ज्ञाता के सम्मान से प्रेरित है जो जागृत है। अब आप जो भी करते हैं, मोहित हुए बिना या उस क्रिया से पहचान बनाए बिना अपने उत्कर्ष एवं मुक्ति के लिए करते हैं। आप यह देखेंगे कि आपके इरादे साफ हैं, सिर्फ विकास के लिए, सिर्फ जीने के लिए और दूसरों को जीने में मदद करने के लिए। इस तरह आप लोभ एवं जन मूल्यों की मूर्छा से स्वयं को मुक्त करके स्वयंभूत बनने की शक्ति और आनंद की अनुभूति करते हैं।
___ अब तक हमने देखा कि अनभिज्ञ मन अवसाद जैसे भारी कंपनों को अपने ऊपर हावी कर देता है एवं हमारे जीवन में गुरुत्वाकर्षण का कार्य करता है। अब आगे हम अशुचि के अर्थ का विशिष्ट रूप से विश्लेषण करेंगे। शरीर स्वयं में अशुचि है क्योंकि विघटन उसका स्वभाव है। अंतत: हमारे शरीर के सारे कोशाणुओं का क्षय होता है और उसके समस्त घटक अपने सरल आकार में लौट जाते हैं।
हमारे शरीर के तत्त्व क्या हैं? पूर्वजों ने उन्हें पृथ्वी, जल, अग्नि एवं वायु कहा है। जैसे, दाँत और नाखून पृथ्वी से संबंधित तत्त्व हैं, खून और थूक जल से, शरीर की गर्मी एवं नसों की प्रणाली अग्नि से एवं श्वास लेने की प्रक्रिया वायु से संबंधित है। इन चार तत्त्वों से ही प्रत्येक मानवीय
आकार का संघटन होता है। ये सभी में एक समान हैं। हमारे पूर्व विचारों, . भावनाओं, शब्दों एवं क्रियाओं के पुद्गल जिन्हें हम कर्म कहते हैं, उनके
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