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निर्भरता से मुक्ति उनके साथ रहने से आपको कुछ मिल रहा है, मगर वास्तव में आपके अंतर का क्षय हो रहा है।
इसीलिए ज्ञानवान व्यक्ति वस्तुओं के प्रति आसक्त नहीं होते हैं। ऐसा ही एक ज्ञानी व्यक्ति था जो एक बड़े घर में रहता था। मगर उसका घर खाली था। एक शाम कुछ चोर आए। 'मैं क्या करूँ?' ज्ञानी सोचने लगा। 'चोरों के पास अक्ल नहीं होती और जब उन्हें पता चलेगा कि मेरे पास उनके लायक कुछ भी नहीं है, उन्हें क्रोध अवश्य आएगा। तब शायद वे मुझे हानि पहुँचाने की कोशिश करें।'
इसलिए उसने वहाँ पड़ी एकमात्र आलमारी खोली, जो खाली थी और अंदर छिप गया। चोर आए और देखने लगे। उन्हें कुछ नहीं मिला। जब उन्होंने आलमारी देखी, तो उसे खोलने लगे। उन्होंने अंदर बूढ़े आदमी को खड़े देखा।
'तुम हमसे क्यों छिप रहे हो?' उन्होंने पूछा।
'क्या जवाब दूं?' ज्ञानी सोचने लगा। उसने कहा, 'मैं आपसे शर्म के मारे छिप रहा हूँ।'
'किस बात की शर्म?' उन्होंने पूछा।
'श्रीमान,' उसने जवाब दिया, 'इस घर में आपको देने लायक कुछ . भी नहीं है। अपने मेहमानों को कुछ नहीं देने से मुझे बहुत शर्मिंदगी हो रही है। इसलिए मैंने सोचा कि मुझे छिप जाना चाहिए।'
चोर हँसने लगे। 'हाँ', उन्होंने कहा, 'तुम ज्ञानी हो, क्योंकि तुम्हारे पास कुछ भी नहीं हैं।'
'हाँ', ज्ञानी ने जवाब दिया, 'अगर हमारे पास कोई वस्तु है, तो हमें चिंता है। अगर हमारे पास कुछ नहीं है, तो चिंता कैसी?'
वस्तुओं का परिग्रह करने से आप चिंताओं का परिग्रह कर रहे हैं। इससे आपको इस बात की भी चिंता रहती है कि कोई आपकी वस्तुओं पर ध्यान देता है या नहीं। अगर मेहमान आए और उन्होंने आपकी पेंटिंग को
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