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जीवन का उत्कर्ष
चिंतन के बिंदु मैं अपनी अशरण अवस्था को पहचाने लगा हूँ। एक-एक करके मैं देख रहा हूँ कि जिन वस्तुओं और व्यक्तियों पर मैं निर्भर था, वे अपने आप में लाचार हैं।
मुझे अपनी चेतना को इन अनित्य निर्भरताओं से हटाकर जीवन के पावन प्रवाह के साथ जोड़ना है जो निरंतर है। उस चेतना के साथ जुड़कर मुझे अपना नित्य शरण, अपना आंतरिक संसार मिलेगा।
मुझे जीवन की अनंतता, उस अनंत प्रवाह की अनुभूति करनी चाहिए। एक लहर के उठाव का अर्थ है दूसरी लहर का गिरना। जन्म और कुछ नहीं है, कहीं एक मरण ही है। यही प्रक्रिया है - कुछ विलीन होता है ताकि कुछ प्रकट हो सके।
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