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जीवन का उत्कर्ष भ्रांतियों से परे जा सकते हैं जिनके कारण आप जीवन को उसकी वास्तविकता में नहीं देख पाते। आपके पथ का सबसे प्रथम और अधिकतम अवरोध है तृष्णा। जब आप वस्तु को एक स्फटिक विचार के समान नहीं, मगर अपनी इच्छा पूर्ति का साधन समझ लेते हैं, तब आपकी अनभिज्ञता में तृष्णा उभरने लगती है। फिर आप अपनी सारी ऊर्जा उस वस्तु को पाने में लगा देते हैं। कभी आप उसे हासिल कर लेते हैं और कभी नहीं कर पाते। मगर दोनों ही परिस्थितियों में, ऐसा समय आता है जब आपको उस वस्तु को छोड़ना पड़ता है। जब वह आपकी हथेली में है, तब अगर आपमें अभिज्ञता है, तो उसे देखकर मुस्कुराते हुए कहेंगे, 'क्या यह वही वस्तु है जिसे पाने के लिए मैंने इतना प्रयत्न किया है? क्या इसी के लिए मैंने अपनी ऊर्जा व्यय की है?'
जो वस्तु हमें दूर से आकर्षित और मोहित करती है, वह समीप आने पर वैसी नहीं दिखती। जब आप पास जाते हैं, तब आप आश्चर्य से सोचने लगते हैं, क्या यह वही वस्तु है जिसे मैंने दूर से देखा था?' आपने देखा होगा कि जब आप पर्वत को दूर से देखते हैं, तो वह नरम और गोल नज़र आता है। कोहरे से ढका हुआ, वह मोम की तरह दिखता है। मगर जब आप उसके एकदम पास आते हैं, तब पैने पत्थर और चट्टानें नज़र आती हैं। . इसीलिए सत्य की प्रकृति को समझने के लिए हमें यह समझना होगा कि वास्तविकता क्या है, बिना उसे विकृत किए या छिपाए। हमें वे सारे बाहरी आवरण उतार देने होंगे जिन्हें हमारे मन ने निर्मित किए हैं। मन अनेक लुभावने शब्दों और मरीचिकाओं का निर्माण करता है। वह सत्य को चमकीले आवरणों से ढकना चाहता है। जिस तरह अपनी प्यास बुझाने के लिए एक हिरण मरीचिका की तरफ कुलांचे भरता है, हम भी वह सब कुछ पाने के लिए बेचैन हैं जो वास्तविकता में भ्रम मात्र हैं। यदि आप गर्मी के दिनों में सरोवर के शीतल स्पर्श का एहसास करना चाहते हैं, तो आपको अपने वस्त्र उतारने होंगे। अन्यथा आप शीतल जल से सीधा संपर्क नहीं कर पाएँगे। उसी तरह यदि आप जीवन की ताज़गी का आनंद लेना चाहते हैं, तो आपको अपने आवरण उतारने होंगे। शब्द, कल्पनाएँ और सुनिश्चित धारणाएँ- ये सभी आवरणों का कार्य करते हैं। उनका छेदन कीजिए और
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