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छोडो, जब गुरुमहाराज कहा कि फेर कभी कोई खरतर आचार्यको छलनानहीं, तबयोगणियोंनें ऐसावचन अंगीकारकिया और सातवरदान दिया" १ प्रतिग्राममें खरतर श्रावकदीप्ति - वंतहोगा ॥ २ ॥ प्रायकरके खरतर श्रावक निर्धननहिंहोगा ॥ ३ ॥ संघमें मरीआदिकसें कुमरणनहिंहोगा ॥ ४ ॥ अखंड शीलपालनेवाली साधवीके ऋतु न आवेगा ।। ५ ।। आपका नाम लेतां वीजलीआदिको ईतरेका उपद्रवसंघमें नहिंहोगा || ६ || प्रायें अकालमृत्युनहिंहोगा ॥ ७ ॥ प्रायें खरतरश्रावक सिंधुदेशमें गया धनवंत होगा | यह सातवरदेके फेर योगणियों कहनेंलगीकि, १ खरतरआचार्य सिंधुदेशगयांथकां पंचनदीकों साधनकरे ॥ २ ॥ खरतर आचार्य दिनप्रति दो हजार (२०००) सूरिमंत्रको जापकरे || ३ || खरतरसाधु नित्य दो हजार (२०००) नवकार मंत्र का जाप - करे || ४ || खरतर श्रावक दिन प्रति सवेर सांझे दोनों कालमें सातस्मरणशुद्धअक्षरोंसें शुद्धचित्तगुणतेर हैं ॥ ५ ॥ खरतरश्रावक दिनप्रति तीन खीचडीकी माला गुणतेर हैं, एकमणिकाऊपर एक नवकार १ उवसग्गहर, स्तौत्रगुणें, उसको खीचडीकी माला कहतें हैं ॥ ६ ॥ खरतर श्रावक मासमें दो आंबिलअवश्यकरें, और आप श्रीकीध्यावनारखे ॥ ७ ॥ खरतरसाधुछतीसक्ति सदाएकासणी - करे || यह ७ वर पालनेंसें पूर्वोक्त ७ वर सफलहोवेंगें, ऐसा, कहके फेर योगणियों कहने लगी कि दिल्ली १ अजमेर २ भरुअछ ३ उज्जैण ४ मुलतान ५ उच्चनगर ६ लाहोर ॥ ७ ॥ इननगरों में पूर्णशक्तिरहितखरतरगछनायकरात्रिवासो नरहे ऐसा
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