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गुरु विचरते भये, इनका महात्मगुण देखके, वीकानेरका राजाधिराज श्रीरत्नसिंहजी तथा सिरदारसिंहजी महाराज प्रमुख बहुतसे भक्तिरागकों धारण करनेवाले भये सेवा करते थे तथा द्रव्य भाव सामग्री से चरणकमलोंकों पूजन करनेवाले भए, और क्रमसें सर्व गाम नगरोंमे विहार करते हूवे, मुर्शिदाबाद अजीमगंजनगर में आए, उहां श्रीसंघ के आग्रहसें चोमासे किये, श्रीनेमिनाथ स्वामीके मंदिरमें वित्रप्रतिष्ठा करी, फेर उहांसे दूगडबाबू प्रतापसिंहजी प्रमुख संघकी प्रेरणायें विहार करते कलकत्ते गए, जब बाबू प्रतापसिंह - जीनें महाराजकों दर्शन करानें निमित्त कातीमहोच्छवसे अधिक, श्री धर्मनाथस्वामीका समोसरण निकालके दादावाडी लेगए, उहाँ तीन दिन उच्छव रहा फेर सहरमें आए, धर्मका बहुतसा उद्योत हूवा, उहां कितनेक दिन रहकर, फेर मुर्शिदाबाद बालूचर आए, उहां दुगड बाबू इन्द्रचंदजीकों सिद्धगिरिजाके निनाणों यात्रा करनेका उपदेश दिया, तब इन्द्रचन्दजी पिण तत्काल संघनिकालके छहरी पालते थके गुरूमहाराज के साथ हुए, उहांसें बिहार करते चंपापुरी गए, उहां बीकानेरके संघने बनवाया भया, श्रीजिनमंदिरकी बडे उच्छव के साथ प्रतिष्ठा करी, फेर उहांसें बिहारकर के, शिखरजी पावापुरी राजग्रही बनारस प्रमुख सर्व तीर्थोंकी यात्रा करते हुए, जयपुर, कृष्णगढ, अजमेर, पाली गोढवालकी पंचतीर्थी मोटी तथा छोटी, आबूजी, केसरियानाथजी संखेश्वरापार्श्वनाथ, तारंगा, गिरनारजी प्रमुख यात्रा करते हूवे, संवत् १९०२ आषाढ मासमें श्रीसिद्धगिरीगए, उहां चौमासा रहके बाद चोमासा
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