Book Title: Jinduttasuri Charitram Uttararddha
Author(s): Jinduttsuri Gyanbhandar
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

View full book text
Previous | Next

Page 208
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तत्वकों नमनकर, से, सद्गुरु पाय ॥ देवी भगवती सानिधे, वचन अमृतरसथाय ॥ १ ॥ चौरासीलक्षजोनिमें, जे रह्या जीव अनन्त, ॥ मोहमिथ्यात्वमें पड्या, पायो दुःख नही अन्त ॥ २॥ परमदेव परमातमा, चिदानन्द गुणचंग ॥ भव्यजीवके हितभणी, भेद कह्या सहु अंग ॥३॥ गणधर गौतमआदिसहु, रचियां अंग अनूप ॥ त्रिकरणहूं प्रणमुं सदा, ज्ञानआतम गुण भूप ॥४॥ आचारज उवझायमुनि, भगवन वचन उपेत ॥ भाष्यटीका नियुक्तिकर, प्रगट किया संकेत ॥५॥ भगवतीसूत्रमाह कह्या, आगमना पंचअंग ॥ सरधेजेभविप्राणिया, पामें नित उछरंग ॥६॥ जयवंता. वरतो सदा, सहु जगपंडवज्ञान ॥ पिणउपगारी भव्यकों, ए श्रुत ज्ञानप्रधान ।। ७ ।। दुष्टकर्म संयोगसें, चितबैठे नहीं ज्ञान, पिणजाणुं सुरतरुसमो, एहीजधर्मप्रधान ॥८॥ प्रबल भाग्यसंयोगसें, पारशदरसण पाय । पारश फरयां लोह सहु, गुण कंचन समथाय ॥९॥ पारस प्रभुके नामसें, सहु संकट मिट जाय, ईति उपद्रव भय टले, श्रीजयगुण प्रगटाय ॥ १० ॥ जिनदरसण मुझमनवस्यो, जे प्रगटे चित आय ॥ कर्म शत्रुदलजीपके, शिवरमणी वरुं जाय ॥ ११ ॥ शिवपुर जोवा कारणे, समकित दृढ हेत ॥ बालअज्ञ श्रीजयभणी, श्रीपितामह गुणदेत ॥ १२ ॥ जबलगमेरुअडिग्ग हैं, जबलग शशिअर सूर । तबलग यह पुस्तकसदा, रहजो गुण भरपूर ॥ १३॥ पोथीप्यारी प्राणथी, गलेहियाकोहार ।। बहुत यतनकर राखज्यो, पोथीसेतीप्यार ॥ ऐसी हमारी आशा सफलकरज्योसही ॥ १४ ॥ अथ लेखकः संक्षिप्तरीत्या स्वकुलं दर्शयति, विकहीमाहरोकुल ३७ दत्तसूरि० For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240