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प्रश्नः - अन्यमतवाले कहते है, कि जैनधर्मवाले सृष्टिकर्त्ता ईश्व रकों न मानते हैं, इससे नास्तिक है, सो जैनी लोक ईश्वर मानते हैं या नहिं,
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जो जैनधर्मकों नास्तिककहतें हैं सो नास्तिक हो सक्ते हैं ( क्यूंकि ) सर्वमतवाले अन्य अन्य प्रमाणसें अन्य ईश्वरकृत लोकरचना कहेतें हैं, ( परन्तु ) सत्यप्रमाण से कोई ईश्वरकी करी सृष्टि सिद्ध नहिं हो सक्ती है ( विचारना चाहिये ) लोकरचना तो एक, (और) ब्रह्मा विष्णु महेश्वरादिक, ईश्वर रचनेवाले बहुत हुए, इससे एकेक मतसें, एकैका मत झूठा होतां, सब झूठे हुवे (और) यही बात अंत में सिद्ध हुई, कि जगतचना अनादि है, इससे जगत्कर्त्ता ईश्वर कोई नहिं (और) जो ईश्वर नाम धारके राग, द्वेषमें, मन होकर रातदिन जगत् विटंबणा में फस रहे हैं, आपस मे लडरहे हैं, (तथा) अठारे दूषणों करके सहित हैं, इसमाफक चरित्र करनेवालों कों जैनवाले देवगतिमें मानते हैं, (और) जो ईश्वर, अनन्त अपना आत्मगुणांमें मन हैं, तथा, शांतिस्वरूपधारक हैं, रागद्वेषादिक अठारे दूषणरहित हैं, लोकालोक त्रिकाल विषयपदार्थोंकों जाणनेवाले हैं, संसारमें आवागमनरहित, हमेशां सिद्धिस्थान में विराजमान हैं, ऐसा ईश्वरकों जैनधर्मवाले ईश्वर मानतें हैं,
प्रश्नः -- यदि जैनधर्मवाले ईश्वर मानते हैं, सो ईश्वर के कितने नाम हैं,
उत्तर - अनंतकाल में, अनंते तीर्थकर परमात्मगुण पायके सि
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