Book Title: Jinduttasuri Charitram Uttararddha
Author(s): Jinduttsuri Gyanbhandar
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

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Page 234
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५११ का पहेला और उत्सर्पिणीका छठा आराकी समान मर्यादा कही, अब दूसरो सुखमा नामें आरो, ये तीन क्रोडाक्रोड सागरोपम प्रमाणका था, इसमें मनुष्यतिर्यचका दो पल्योपमका आऊखा, (और) दो कोशका शरीर था, बोरप्रमाणें दोदिन पीछे आहार करे, १२८ पांसली थी, (और) ६४ दिनपर्यन्त अपना पुत्र युगलकी पालना करे, कल्पवृक्ष सब प्रकारका मनोरथ पूरण करे, अन्तमें मरके देवगति जावे, (यह ) अवसर्पणी कालका दूसरा आरा, (और) उत्सर्पणीका पांचमा आएकी मर्यादा कही ॥ २ ॥ तीसरो, सुखमदुखमानामें आरो, दो क्रोडाक्रोडसागरोपमप्र माणें ( इसमें ) मनुष्य तिर्यंचका एक पल्योपमका आयु, (तथा) एक कोशको शरीर होय, एकान्तरे आमलाप्रमाणे आहार करे, ६४ पांशुल हुवे ७९ दिनतक अपना युगल पुत्रादिककी पालना करे, कल्पवृक्ष सर्व मनोरथ पूरण करे, सरलपणासें मरके देवगतिकों प्राप्त होवे, (यह ) अवसर्पिणीका तीसरा आरा ( और ) उत्सर्पणीका चौथा आराकी मर्यादा कही ॥ ३ ॥ ( चोथा ) दुखम सुखमा नामें आरा, ४२ हजारवर्ष ऊणा, एक क्रोडाक्रोड सागरोपम प्रमाणें (इसमें ) मनुष्य, तिर्यचका, उत्कृष्टा एक पूर्व क्रोड वर्षका आयु, (तथा) पांच धनुष्यप्रमाणें शरीर होवे, नित्य भोजन करे, (इसमें ) युगलिया न होय, सर्व संसारी असिमसीकसी आजीवका कर्मका करनेवाला होय, ( इससे ) केई जीव, देवता मनुष्य तिर्यंच नारकी, ए चारुंहिगति जाणेंवाले होय, और केई जीव सर्व कर्म खपायके पांचमी मोक्षगतिकोंभी प्राप्त होवे, ( यहां ) For Private And Personal Use Only

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