Book Title: Jinduttasuri Charitram Uttararddha
Author(s): Jinduttsuri Gyanbhandar
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

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Page 236
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९३ मनुष्य होता रहा (फेर) कौनसै प्रकारसें संसार संबन्धी नीति मर्यादा प्रवर्तन भई, उत्तर-अवसर्पणी कालका तीसरा आरा, बहुतसा व्यतीत होनेतक तो, असिमसिकर्मादिक रहित युगलिया मनुष्य, तिर्यच होता रहा (इस उपरांत) दक्षण भरताध मध्यखंडमें, सातकुलकर एक वंशमें उत्पन्न भए, कुलकर उसको कहते हैं, (कि) जिणोंने तिस तिसकाल मुजब, मनुष्योंके वास्ते नीतिमर्यादा बान्धी है, (और) पाठा फेरसें सप्तमनु कहेतें हैं, जंबूद्वीप पन्नतीके मतसें १५ कुलकर भी कहे हैं, इनोंसे मनुष्योंकी राजनीति आदि कितनीक नीतियें मनुष्य योग्य सामान्य मर्यादा बान्धी गई है, विशेष मनुष्योंकी मर्यादा प्रथम तीर्थपतिके आधीन है, वैही सर्वदा कालमे प्रवर्तते है, प्रश्नः-किस प्रकारसे कुलकर उत्पन्न भये, (और) क्या क्या नीतिमर्यादा प्रवर्तन भई, उत्तर-तीसरे आरे उतरतां, दशजातिके कल्पवृक्ष हीयमान कालके सबब अल्प फल देनेवालें, रहगए, (तब) युगलक लोकोने अपनें अपनें वृक्षोंका ममत्वकर लिया, जो कोई युगल, दूसरेका कल्पवृक्षके पास फलादिक कुछ मांगे तो आपसमें क्लेश करे, (इसवास्ते) युगल पुरुषों के दिलमें विचार आया, (कि) कोई ऐसा पुरुष होय, सो सर्वका न्याय करे, इसीसमें एक युगलकों, एक बनके श्वेत हस्तीनें देखकर, अत्यंत प्रेमसें अपने स्कंधपर चढालिया (जब) युगल हाथीपर बैठा थका वनमें फिरने लगा, (तब) और युगल लोकोनें विचारा, यह युगल सर्वमें बड़ा है, सो हाथीपर For Private And Personal Use Only

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