Book Title: Jinduttasuri Charitram Uttararddha
Author(s): Jinduttsuri Gyanbhandar
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

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Page 237
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५९४ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चढा हुवा फिरता है, (इसवास्ते, इसकों अपना राजा न्यायाधीश बनाओ, ऐसा विचारके युगललोकोंने न्यायाधीशपणें स्थापन किया, इसका विमलवाहन नाम हूवा ( इसके ) चन्द्रयशा नामें भार्या हुई, ( इसनें ) सर्व युगल लोकोंकों, जूदा जूदा कल्पवृक्ष बांटके दे दीये (जब ) कोई संतोषरहित युगलिया, दूसरेके कल्पवृक्षसे कुछ मांगता तो दूसरा क्लेश करता हूवा उसको साथ लेके राजाके पास आता ( तब ) विमलवाहन (हा) तुमनें यह क्या काम किया, ऐसी हकारकी दंडनीति करता इससे अपराधी युगल डर जाता था ( सो फेर ) वैसा काम कभी न करता था इस प्रथम कुलकरका देहमान ९०० धनुषका हुवा (सो) युगल ( तथा ) हस्ती पिछले भवमें पश्चिममहाविदेहक्षेत्र में वाणियापणें दोनुं भाइ हुए थे, ( जिसमें ) एक तो सरल था (और) दूसरा कपटी था ( परन्तु ) आपस में स्नेह बहुतथा, कपटी जो कहेता (सो) सरल मानलेता था, अन्तमें सरल भाई मरके युगल मनुष्य हूवा (और) कपटी मरके हाथी हूवा ( इससे ) एकेक को देखनेंसें ईहापोह करतां जातिस्मरण ग्यानकों प्राप्त हुवा, ( तब ) स्नेहवस होकर हाथीनें भाईकों स्कंधेपर चढालिया, इसका विस्तारसंबन्ध आवश्यक सूत्र बृहद्वृत्तिसें जाणलेना, ( इति प्रथम कुलकर संबन्ध ) ॥ १ ॥ दूसरा कुलकर, विमलवाहनका पुत्र चक्षुस्मान् नामें कुलकर हूवा (तिसके) चन्द्रकांता नामे भार्या हूई (और) ८०० धनुषप्रमाण देहमान हूवा, इसके पिण पूर्ववत् हकारकी दंडनीति रही ॥ २ ॥ इति ॥ ( तीसरा ) यशोमान नामें कुलकर हूवा ( जिसके सरूपा For Private And Personal Use Only

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