Book Title: Jinduttasuri Charitram Uttararddha
Author(s): Jinduttsuri Gyanbhandar
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

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Page 233
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९० क्षेत्रकी जमीन अत्यन्त सुन्दर बहुत रमणीक सोनेके थाल समान बराबर थी (और) इसमें मनुष्य तथा सर्व जीव जानवर बडे सरलखभावी अल्प काम क्रोध मोह राग द्वेषवाले होते थे (प्रायें) नीरोग सरीर सुंदर रूपवान होते थे, दश जातिके कल्पवृक्षोंसें, अपने खानेपीने वस्त्र घरादिकका सब मनोरथ पूरण करते थे, (और) एक लडका एक लडकी दोनुका युगल जन्मते थे (और युगल पुरुष स्त्रीरूपसे जन्मते थे वैसाहि उनोंके आपसमे संबंध होता था, और यह युगल धर्म अनादिसें हैं, इसलिये वह जब वे युवान अवस्थाकों प्राप्त होते थे (तब ) युगल जनमे हुवे, आपसमें स्त्री भरतारका संबंध करलेते थे, अर्थात् युगलियोमें साथमे जनमे हुवाका भाई बेनका संबन्ध न होणेसें, स्त्री पुरुषकाहि संबन्ध होता था, जैनमतके प्रमाणसें तीनकोस प्रमाण जिनोंका शरीर होता था (और) तीन पल्योपम प्रमाण आऊखा होता था, जिनोंके दोयसै छपन्न पृष्ट करंडके हाड होते थे, गुण पचासदिनतक अपना पुत्रादिककी पालना करते थे, जीवहिंसा, झूठ, चोरी आदिक पापकर्म विशेष नहिं करते थे, तीसरे दिन पीछे मटरकी दाल प्रमाण आहार करते थे, कल्पवृक्षोंहीमें सोरहते थे, युगल जोडे पिणगिणतीमें, (शेष) चतुस्पाद, पक्षी, पंचेंद्रियादि सर्व जातके जीव थे, परन्तु सर्व क्षुद्र नहीं थे, सरलस्वभावी थे, इक्षुप्रमुख सर्व रसाल वनोंमें आपसेंही उत्पन्न होते थे, (परन्तु ) मनुष्योंके भोगमें नहिं आते थे, (निकेवल) उस कालके मनुष्य कल्पवृक्षोंके दियेहुवे फल फूलोंका आहार करते थे, वस्त्र आभूषण पहनते थे, (इत्यादि) अवसर्पणी का For Private And Personal Use Only

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