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। २४ नाम, रत्नसागर प्रणयुक्त नाम १०
૫૮૮ द्धिस्थानकको प्राप्त हुए हैं, इस अपेक्षायें तो अनंत नाम हैं, (परन्तु) सर्वके गुणकी तुल्यतापणे समुच्चय, सत्यार्थ गुणयुक्त नाम १००८ हैं, सो हजार नामको स्तोत्र, रत्नसागर प्रथमभागमें लिखा है, (फेर ) समुच्चय २४ नाम जैन ईश्वरका हेमकोशादिक ग्रंथमें प्रसिद्ध है ( यथा) अर्हन् १ जिना २ पारगत ३ स्त्रिकालवित् ४ क्षीणाष्टकर्मा ५ परमेष्ट्य ६ धीश्वरः ७ शंभुः ८ स्वयंभु ९ भंगवान् १० जगत्प्रभु ११ स्तीर्थंकर १२ स्तीर्थकर १३ जिनेश्वरः १४ ॥१॥ स्याद्वाद्य १५ भयदः १६ सर्वाः १७ सर्वज्ञः १८ सर्वदर्शि १९ कैवलीनौ २० देवाधिदेव २१ बोधिदः २२ पुरुषोत्तम २३ वीतराग २४ आप्ता ॥२॥
प्रश्न: जैनलोक अनादि अनन्तकालमें एक ईश्वर मानते हैं (वा) अनन्त ईश्वर मानते हैं,
उत्तर-एकभी मानते हैं (और) अनेक भी मानते हैं, प्रश्न:-एक केसें मानतें हैं,
उत्तर-रागद्वेषरहित, परमात्मगुण, अक्षयसुखसंपदा, भाव सबके तुल्य होनेसें एक ईश्वरगुणयुक्त नाम मानतें हैं,
प्रश्न:- अनेक केसें मानते हैं,
उत्तर-द्रव्य, क्षेत्र, कालभावकी, अपेक्षायें अनन्त सिद्ध भए, इससे अनन्त ईश्वर मानते हैं,
प्रश्न: जैनलोक कालचक्रका खरूप किसतरे मानते हैं,
उत्तर-कालचक्रका दो भेद मानते हैं, १ अवसर्पणी काल २ उत्सर्पणी काल,
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