Book Title: Jinduttasuri Charitram Uttararddha
Author(s): Jinduttsuri Gyanbhandar
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

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Page 222
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७९ fare स्यालकी। पूजन कीज्योजी नर नारी गुरु महाराजका हो ॥ पू० ॥ सिंधुदेश में पंचनदीपर, साधे पांचो पीर । लोईऊपर पुरुषतिराये, ऐसे गुरु सधीर ॥ ० ॥ १ ॥ प्रगटहोयके पांचपीरने, सात दीया वरदान | सिंधुदेश में खरतरश्रावक, होवेगा धनवान ॥ ५० ॥ २ ॥ सिंधुदेश मुलताननगर में बडामहोच्छव देख | अंबड और गच्छका श्रावक, गुरुसे कीना द्वेष || पू० ॥ ३ ॥ अणहिलपुर पत्तनमें आवो, तो मैं जानुं सच्चा । बडे महोत्सव आवेगें तूं, निर्धन होगा कच्चा ॥ पू० ॥ ४ ॥ पत्तनबीच पधारे दादा, सनमुख निर्वन आया । गुरु बतलाया क्योंरे अंबड, अहंकारफल पाया । पू० ॥ ५ ॥ मनमें कपट किया अंबडने, खरतर महिमा धारी । जहर दीया उन अशनपानमें, गुरु विधिजाणी सारी ॥ पू० ॥ ६ ॥ भणशाली मुखवर श्रावकसें, निर्विष मुद्रा मंगाई । जहर उतारा तब लोकोंमें, अंबड निंदा पाई ।। पू० ।। ७ ।। मरके व्यंतर हुआ वो अंबड रजोहरण हर लीना । भणसाली व्यंतर वचनोंसे, गोत्रउतारा कीना ॥ पू० ॥ ८ ॥ सज्जहोय गुरु ओघालेके, गोत्र वचाया सारा । ऋद्धिसार महिमा सदगुरुको, दीपकका उजियारा ॥ पू० ॥ ९ ॥ श्लोक - अतिसुदीप्तिमयैः खलु दीपकैर्विमलकांचनभाजनसं स्थितैः । सकल० ओ ही श्री पर० दीपं निर्व्वपामि ते खाहा ॥ ५॥ अथ छठी अक्षतपूजा. दोहा - अक्षतपूजा गुरुतणी, करो महाशय रंग । क्षती न होवे अंगमें, जीते रण में जंग ॥ १ ॥ राग आसावरी - अवधू सो योगी For Private And Personal Use Only

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