Book Title: Jinduttasuri Charitram Uttararddha
Author(s): Jinduttsuri Gyanbhandar
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

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Page 226
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८३ रजमें भरिया, गुरु सब बात सुनावेरे ॥ सुं० || ऐसे दादा दत्त कुशल गुरु, परचा प्रगट दिखावेरे ॥ सुं० ॥ ३ ॥ बोथरा गूजरमल श्रावककी, दादा कुशल तिरावेरे ॥ सुं० ॥ सुखसूरि गुरु समयसुंदरकी, ज्याज अलोप दिखावे रे || सुं० ॥ ४ ॥ बारासै इग्यारे दत्तसूरि, अजमेर अणसण ठावे । उपज्या सोधर्मा देवलोके, सीमवर फुरमावेरे ॥ सुं० ॥ ५ ॥ इकअवतारी कारज सारी, मुक्ति नगरमें जावेरे ॥ सुं० ॥ कुशल सूरि देराउर नगरे, भुवनपती सुरथावेरे ॥ सु० || ६ || फागणवदि अम्मावस सीधा, पूनम दरशदिखावेरे ॥ सुं० ॥ मणिधारी दिल्लीमें पूज्यां संकट सुपने नावेरे ॥ सुं० ॥ ७ ॥ रथी उठी नहीं देख बादसा, चांही चरण पधरावे रे || सुं० ॥ वस्त्र अतर पूजा सद्गुरुकी, ऋद्धिसार मन भावे रे || सुं० ॥ ८ ॥ ु ँ श्लोक- अखिलही शुभैर्नवचीरकैः प्रवरप्रावरणैः खलु गन्धतः ॥ सकल० || ओ ही श्री प० वस्त्रं चोवाचन्दनपुष्पसारं निर्वपामिते स्वाहा ।। ९ ।। ॥ अथ दशमी ध्वजपूजा. ॥ दोहा - ध्वजपूजा गुरुराजकी, लहके पवन प्रचार । तीन लोकके शिखरपर, पहुंचे सो नर नार ॥ १ ॥ चाल - जिनगुण गावत सुरसुंदरीरे ए चाल - ध्वजपूजन कर हरख भरीरे ॥ ६० ॥ सज सोले शिणगार सहेल्यां श्रीसद्गुरुके द्वार खरी रे ॥ ६० ॥ अपछर रूप सुतनु सुकलीनी, ठम २ पग झणकार करीरे ॥ ध० ॥ १ ॥ गावतमंगल देत प्रदक्षिणा, धन २ आनंद आज घरीरे , For Private And Personal Use Only

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