Book Title: Jinduttasuri Charitram Uttararddha
Author(s): Jinduttsuri Gyanbhandar
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

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Page 225
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८२. chote che Cheche चा. लाभजान गुरू नगर पधारे ॥ भूपति आय बधावत है रे ॥ चा०॥२॥ राजकुमरको कुष्ठ मिटायो, अचरज तुरत दिखावत है रे ॥ चा० ॥ दश हजार कुटुम्ब संग नृपको, श्रावकधर्म धरावत है रे ॥ चा० ॥ ३॥ दयामूल आज्ञा जिनवरकी, बारा व्रत उचरावत है रे ॥ चा० ॥ ऐसे चार राज समकित धर, खरतर संघ बनावत है रे ॥ चा० ॥ ४॥ कुष्ठ जलंधर क्षय भगंदर, कइयक लोक जिवावत है रे ॥ चा० ॥ ब्राह्मण क्षत्री अरु माहेश्वर, ओसवंश पसरावत है रे ॥ चा० ॥५॥ तीसहजार एकलक्ष श्रावका महिमा अधिक रचावत है रे ॥ चा० ॥ कहत रामऋद्धिसार गुरुको, फलपूजा फल पावत है रे ॥ चा० ॥६॥ __ श्लोक-पनसमोचसदाफलकर्कटैः सुसुखदैः किल श्रीफलचिमैटैः ॥ सकल० ॥ ओ ही श्री प० फलं निर्वपामि ते स्वाहा ॥८॥ अथ नवमी वस्त्र अत्तर पूजा. दोहा-वस्त्र अतरगुरु पूजना, चौवा चंदन चंपेल । दुम्मन सब सज्जन हुए, करे सुरंगा खेल ॥१॥ __ मनडोकिमहीन वाजे हो कुथुजिन. ए चाल-लखमी लीला पावे रे सुंदर लखमी लीला पावे । जो गुरु वस्त्र चढावें रे ॥ सुं० ॥ सुजस अतर महकावे रे ॥ सुं० ॥ दुरजन शीश नमावेरे सुं० ए आंकणी । दरिया बीच जहाज श्रावककी, डूबन खतरे आवे । साचे मन समरे सद्गुरुकुं, दुखकी टेर सुनावेरे । सुं० ॥१ ॥ बाचंताव्याख्यानसूरीश्वर, पंखीरूपेथावे । जाय समुद्रमें ज्याज तिराई, फिर पीछा जब आवेरे ।। सुं ॥२॥ पूछे संघ अच For Private And Personal Use Only

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