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गुरु मेरा ए चाल, रतनअमोलक पायो सुगुरु सम रतन अमोलकपायो । गुरु संकट सबही मिटायों सु० ए आंकणी । विक्रमपुरनगरी लोकनकू, हैजारोग संतायो । बहुतउपायकिया शांतिकका, जरा फरक नहीं आयो ॥ सु० र० ॥ १ ॥ योगी जंगम ब्रह्म संन्यासी, देवी देव मनायो । फरक नहीं किनहीने कीनो, हाहाकार मचायो । सु० र० ॥२॥ रतन चिंतामणि सरिखो साहित्र, विक्रम पुरमें आयो । जैनसंघको कष्ट दुरकर, जयजयकार वरतायो ॥ सु० २० ॥३॥ महिमा सुनमाहेश्वरि ब्राह्मण, सवही शीश नमायो । जीवतदान करो महाराजा, गुरु तब यों फरमायो ॥ सु० २०॥४॥ जो तुम समकित व्रतको धारो, अवही कर, उपायो । तहत वचन कर रोग मिटायो, आनंद हर्ष बधायो ॥ सु० २०॥५॥ जो कोई श्रावक व्रत नहीं धाखो, पुत्री पुत्र चढायो ॥ साधु पांचसे दीक्षित कीना, साधवियां समुदायो ॥ सु० र० ॥ ६ ॥ मंत्र कला गुरु अतिशय धारी, ऐसो धर्म दीपायो ॥ ऋद्धिसार पर किरपा कीनी, साचो इलम बतलायो ॥ सु० २०॥ ७॥
श्लोक-सरलतन्दुलकैरतिनिर्मलैः, प्रवरमौक्तिकपुंजवदुज्ज्वलैः । सकल० ओ ही श्री प० अक्षतान् निर्धपामि ते खाहा ॥ ३ ॥
अथ सातमी नैवेद्यपूजा. दोहा-नैवेद्य पूजा सातमी, करो भविक चित चाव । गुरुगुण अगणित कुण गिणे, गुरु भवतारण नाव ॥ १ ॥
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