Book Title: Jinduttasuri Charitram Uttararddha
Author(s): Jinduttsuri Gyanbhandar
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

View full book text
Previous | Next

Page 223
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८० गुरु मेरा ए चाल, रतनअमोलक पायो सुगुरु सम रतन अमोलकपायो । गुरु संकट सबही मिटायों सु० ए आंकणी । विक्रमपुरनगरी लोकनकू, हैजारोग संतायो । बहुतउपायकिया शांतिकका, जरा फरक नहीं आयो ॥ सु० र० ॥ १ ॥ योगी जंगम ब्रह्म संन्यासी, देवी देव मनायो । फरक नहीं किनहीने कीनो, हाहाकार मचायो । सु० र० ॥२॥ रतन चिंतामणि सरिखो साहित्र, विक्रम पुरमें आयो । जैनसंघको कष्ट दुरकर, जयजयकार वरतायो ॥ सु० २० ॥३॥ महिमा सुनमाहेश्वरि ब्राह्मण, सवही शीश नमायो । जीवतदान करो महाराजा, गुरु तब यों फरमायो ॥ सु० २०॥४॥ जो तुम समकित व्रतको धारो, अवही कर, उपायो । तहत वचन कर रोग मिटायो, आनंद हर्ष बधायो ॥ सु० २०॥५॥ जो कोई श्रावक व्रत नहीं धाखो, पुत्री पुत्र चढायो ॥ साधु पांचसे दीक्षित कीना, साधवियां समुदायो ॥ सु० र० ॥ ६ ॥ मंत्र कला गुरु अतिशय धारी, ऐसो धर्म दीपायो ॥ ऋद्धिसार पर किरपा कीनी, साचो इलम बतलायो ॥ सु० २०॥ ७॥ श्लोक-सरलतन्दुलकैरतिनिर्मलैः, प्रवरमौक्तिकपुंजवदुज्ज्वलैः । सकल० ओ ही श्री प० अक्षतान् निर्धपामि ते खाहा ॥ ३ ॥ अथ सातमी नैवेद्यपूजा. दोहा-नैवेद्य पूजा सातमी, करो भविक चित चाव । गुरुगुण अगणित कुण गिणे, गुरु भवतारण नाव ॥ १ ॥ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240