Book Title: Jinduttasuri Charitram Uttararddha
Author(s): Jinduttsuri Gyanbhandar
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar
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५८१ राग कल्याण-तेरीपूजाबनी है रसमें ए चाल. हो गुरु किया असुरकुं वशमें, ए आंकणी. बडनगरीमें आप पधारे, सांमेला धसमसमें, ब्राह्मणलोक बडे अभिमानी, मिलकर आया सुसमें ॥ गु० ॥१॥ हो गु०॥ महिमा देख शक्या नहीं गुरुकी, भरे मिथ्याली गुसमें । मृतक गऊ जिनमंदिर आगे, रखदी सनमुख चसमें ॥ हो० गु० ॥२॥ श्रावकदेख भये आकुलता, कहे गुरुसे कसमें । चिंतादुरकरीहै संघकी, गउ उठचाली डसमेंहो ॥ गुरु० ॥ ३ ॥ मरी गऊको जीतीकीनी, लोक रह्या सब हसमें । जाके गाय पडी रुद्रालय, संघभया सब खुसमें ॥ हो गु० ॥ ४ ॥ ब्राह्मण पायपडे सव गुरुके, देख तमासा इसमें ॥ हुकम उठावेंगे शिरऊपर, तुमसंततिकी दिशमें ॥ हो गु० ॥५॥ नमस्कार है चमत्कारको, कीनी पूजा रसमें । कहे रामऋद्धिसार गुरुकी, आनंद मंगल जसमें । हो० गु० ॥६॥
श्लोक-बहुविधैश्चरुभिर्वटकैर्यकैः प्रचुरसर्पिषि पकसुखञ्जकैः । सकल० ॥ ओ हीश्री प० नैवेद्यं निर्वपामिते वाहा ॥ ७॥
अथ आठमी फल पूजा. दोहा-फलपूजासे फल मिले, प्रगटे नवे निधान । चहुदिशि कीरति विस्तरे, पूजन करो सुजान ॥१॥ - रथ चढ यदुनंदन आवत हैं ए चाल-चालो संध सब पूजनको गुरु समस्यां सनमुख आवत है रे ॥ चा० गु० ए आंकणी । आनंदपुरपट्टनको राजा, गुरशोभा सुन पावत है रे ॥ चा० ॥१॥ भेजा निज परधान बुलाने, नृप अरदास सुनावत है रे ॥
३८ दत्तसूरि०
का
यदुनंदन आव
२॥ चा गु
चा .
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