Book Title: Jinduttasuri Charitram Uttararddha
Author(s): Jinduttsuri Gyanbhandar
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

View full book text
Previous | Next

Page 220
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७७ जातपहारिणा । सकल० ॥ओ ही श्री श्रीजिनदत्त केशरचन्दनं निर्विपामि ते वाहा ॥२॥ अथ तिजी पुष्पपूजा. दोहा-चंपा चमेली मालती, मरुवा अरु मचकुंद । जो चाढे गुरुचरणपर, नित घर होय आनंद ॥१॥ नींदतो गई वादीला मारी. ए चाल-राग मांड । गुरु परतिख सुरतरूरुप सुगुरुसम दूजो तो नहीं । दुजो तो नहीं रे सुमतिजन दूजो तो नहीं । गुरुप० सु० सुगुरुने पूजो तो सही । ए आंकणी । चितोडनगरी वज्रथंभमें, विद्यापोथी रहीरे सु० वि० हेजी मंत्र जंत्र विद्यासेपूरी, गुरु निजहाथग्रही गु० गुरुपर० ॥१॥ पुरउज्जयिनी महाकालके, मंदिर थंभ कहिरे सुम० हेजी सिद्धसेन दिनकरको पोथी, विद्या सरब लही रे सु० वि० गुरुप० ॥ २ ॥ उज्जयिनी व्याख्यानबीचमें, श्राविका रूपग्रहीरे सु० श्रा० हेजी जोगनियां छलनेकुं आई, सबको खील दई ॥ गु० ॥३॥ दीन होय जोगणीयां चोसठ, गुरुकी दाश भइरे सु० गु० हेजी सातदिया वरदानहरपसें, पसख्यो सुयश मही प० गु० ॥ ४ ॥ पुष्पमाल गुरुगुणकी गूंथी, चाढो चित्त चही रे सु० चा० हेजी कहे रामऋद्धिसार सुयशकी, बूटी आपदई बू० गु० ॥५॥ श्लोक-कमलचम्पककेतकीपुष्पकैः परिमलाहृतषट्पदवृन्दकैः ॥ सकल ॥ ओ ही श्री श्रीजिनदत्त० पुष्पं निर्चिपामि ते खाहा ॥३॥ ___ अथ चोधी धूपपूजा. दोहा-धूप पूज कर सुगुरुकी, पसरे परिमल पूर । जस सुगंध जगमें बधे, चढे सवाया नूर । For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240