Book Title: Jinduttasuri Charitram Uttararddha
Author(s): Jinduttsuri Gyanbhandar
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar
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५७०
नाणदंसणधराणं मुत्ताण नमो सिद्धाणं, परमपरमिद्विभूयाणं ॥२॥ आयारधराण नमो, पंचविहायारसुहिआणं च, नाणीणायरिआणं, आयारुवएसयाण सया॥३॥बारसविहअपुवं, दिताण सुअं नमो सुअ. हराणं, सययमुवज्झायाणं, सज्झायज्झाणजुत्ताणं ॥४॥ सवेसि साहूणं, नमो तिगुत्ताण सवलोएवि, तवनियमनाणदंसणजुत्ताणं बंब्भयारीणं ॥५॥ एसो परमिट्ठीणं, पंचन्हवि भावओ नमुक्कारो, सबस्स कीरमाणो, पावस्स पणासणो होई ॥६॥ भुवणेवि मंगलाणं, मणुयासुर अमरखयरमहियाणं, सवेसिमिमो पढमो, होइ महामंगलं पढमं ॥७॥ चत्तारिमंगलं मे हुंतु, अरहंता तहेव सिद्धा य, साहु अ सबकालं, धम्मोय तिलोअमंगलो ॥ ८॥ चत्तारिचेव ससुरासुरस्स लोगस्स उत्तमा हुंति, अरिहंतसिद्धसाहू, धम्मो जिणदेसिअमुआरो ॥९॥ चत्तारिवि अरहंते, सिद्धसाहू तहेवधम्म च, संसारघोररक्खस्स, भएण सरणं पवजामि ॥ १० ॥ अह अरहओ भगवओ, महइमहावीर बद्धमाणस्स, पणयसुरेसरसेहर, विअलिअकुसुमुच्चियकमस्स ॥११॥ जस्स वरधम्मचकं, दिणयरबिंबुद्ध भासुरच्छायं, तेएण पजलंत, गच्छइ पुरओ जिणिदस्स ॥ १२ ॥ आयासं पायालं, सयलं महिमंडलं पयासंतं,मिच्छत्तमोहतिमिरं हरेइ तिण्हपि लोआणं ॥१३॥ सयलमविजीअलोए, चिंतिअमित्तो करेइ सत्ताणं, रक्खं रक्खसडाइणि, पिसाय गहभूअ जक्खाणं ॥ १४ ॥ लहइ विवाएवाए, ववहारे भावओ सरंतोअ, जूएरणेअ राय, गणेश विजयं विसुद्धप्पा ॥ १५॥ पञ्चूसपओसेसु, सययं भवो जणो सुहज्झाणो, एअं झाएमाणो, मुक्खं पइसाहगो होइ ॥१६॥ वेआल रुद्ददाणव,
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