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करके निनाणों यात्रा करी, फेर गोगा, भावनगर, अहमदाबाद, वगेरेमे यात्रा करके, वीकानेरका राजा श्रीरत्नसिंहजी महाराज प्रमुखने अमरचंद सुराणा २०० सवार वगेरे भेजके वीनति कराइ तव सर्व संघके आग्रहसें, संवत् १९०२ मिति फागण वद ७ के दिन वीकानेर आये, संवत् १९०४ मिति माघ सुद १० के दिन श्रीसंघका बनाया भया, श्रीसुपार्श्वनाथ स्वामीके मंदिरकी प्रतिष्ठा करी, संवत् १९०५ वैशाख सुद ५ के दिन श्रीचिंतामणजीके मंदिरमें श्रीजिनबिंबोकी प्रतिष्ठा करी, संवत् १९०६ मिगशर सुद १३ के दिन मंडोवर नगरमें खरतरगच्छ अधिष्ठायक गोरानाम क्षेत्रपालकों प्रसन्न किया, फेर संवत् १९१४ आषाढ सुद १ दिन श्रीवीकानेर नगरमें बिंच प्रतिष्ठा करी, संवत् १९१६ मिति वैशाख वद ६ के दिन नालगाम दादावाडीमें संघका बनाया नवीन मंदिरकी तथा जिनबिंबोकी प्रतिष्ठा करी सुरतगढ प्रतिष्ठा करणेको जाते मार्गमें गेरसर गांवमे अग्निका उपद्रव सांत किया इत्यादि बहुतकालतक श्रीवीरशासनकी प्रभावनाकारक परमोपगारी धर्मोद्योत कारक आचार्य गुणधारक ४५ आगमवीकानेरमे व्याख्यानमें वांच तेथेचंदपन्नत्ती सूरपन्नत्ती वांचताथा तब द्रव्यका वरसात भया ऐसे श्रीजिनसौभाग्यसरिः संवत् १९१७ माघ सुदि ३ रात्रिकों ४ प्रहरतक अणशण आराधना पूर्वक समाधिसें कालधर्म प्राप्त होकर, श्रीवीकानेर नगरमें देवलोककों प्राप्त भए ॥७१॥
अब्दे शैलधरांकरूपनिधने मासे सिते फाल्गुने, ऐशान्यां गुरुवासरे गुणनिधौ देशे च श्रीविक्रमे, .
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