Book Title: Jinduttasuri Charitram Uttararddha
Author(s): Jinduttsuri Gyanbhandar
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

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Page 205
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६२ चिरंजीवी रहो गुणयुक्तव्यक्ति दुर्लभ होवे इस ऊपरान्त ११ शाखाकी पट्टावली, उपकेस गच्छ पट्टावली, वडगच्छ तपागच्छादि पट्टावली, पं. श्रीसत्यविजयजी वंशावली, उ. श्रीयशोविजयजी पं. श्रीमणिविजयजीकास्वरूप, विमलसागरादि तपाशाखा पट्टावली, माणिभद्र क्षेत्रपालादि उत्पत्ति स्वरूप, श्रीआनन्दघनजी श्रीदेवचन्द्रजी प्रेमचन्द्रजी चिदानन्दजी वगेरेका स्वरूप, श्रीजिनप्रभसूरिजी, श्रीजिनकीर्तिरत्नसरिजी, श्रीज्ञानसारजी, श्रीक्षमाकल्याणजी वगेरेका स्वरूप, श्रीराजसागरजी ऋद्धिसागरादि स्वरूप, श्रीमोहनलालजी, मयाचन्दजी, शिवजीरामजी चिदानंदजी, श्रीकीर्तिसारजी वगेरेका स्वरूप, श्रीकर्मचन्द्रडोसी, श्रीकर्मचन्द्रमंत्री विशेषचरित्रस्वरूप, देशनादिस्वरूप अनागतकाल भाविभाव खरूप, पर्यन्त विषय इसग्रन्थमें देखाने योग्य है, ऐतिहासिकादिक प्रसंगसें, परन्तु तथाविधसामग्रीके अभावसें, और इस ग्रन्थके प्रे. रकवर्गकी आतुरताके सबबसें, केवल एकहि प्रतिका आधारमिला, विशेष आधार नहिं मिला, और विहारका समयथा, इसलिये अनियत समयहोनेसें, विशेष प्रयत्न नहि हूवा, विशेष विस्तार ऊपरोक्त विषयका विवेचन नहिं करसके, अब सामग्री मिलनेपर यथा शक्ति परिश्रमादिक करेंगे, एसी भावना है, और इस ग्रन्थ के लिखनेमे कालक्षेप जादा ह्वासो प्रेरकवर्ग क्षमा करेंगें, और परिपूर्ण विषय इस ग्रन्थमें एक साथ नहिं लिखा गया, भिन्न भिन्न विषयपर अलगहिं परिशिष्टाधिकारमें लिखेंगे, ऐसा दर्शाया है, इसकाभि प्रेरकवर्ग क्षमा करें, अल्पसमयमें परिपूर्ण विषयसहित पूर्णग्रन्थ For Private And Personal Use Only

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