Book Title: Jinduttasuri Charitram Uttararddha
Author(s): Jinduttsuri Gyanbhandar
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

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Page 202
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५९ अष्टापदजीका मंदिर, तथा जिनबिंबोकी प्रतिष्ठा करी, श्रीसंघनें बहुत खरच करके अठाई महोच्छव किया फेर क्रमसें दिल्ली, रिणी, राजगढ, चूरू इत्यादि क्षेत्रों में विहारकरते संवत् १९२९ मिति जेठ वद ९ नवमी दीन बीकानेर नगर में गए, संवत् १९३१ मिति जेठ सुद १० दशमी के दिन, माणकचोकमें उपाध्याय श्रीलक्ष्मी प्रधानजी गणीके उपदेश से बनवाया हुवा नवीन श्रीकुंथुनाथ स्वा मीका मंदिरकी प्रतिष्ठा करी, संवत् १९३२ श्रीचिंतामणजीके मंदिर में संघका किया उच्छवके साथ श्रीजिनबिंबोंकी प्रतिष्ठा करी, इत्यादि अनेक धर्मकृत्य करनेवाले सोम्यगुणधारक श्रीजिनहंससूरिजी संवत् १९३५ मितिकार्तिक वद १२ बारसकैदिन चारप्रहरका अणशण आराधना करके समाधिमें कालधर्म प्राप्त होकर स्वर्ग गए । ७२ ।। संवत्सायकतिस्रअंकवसुधासंख्ये सुलग्नोदये धार्मिण्यां तपमासके शनियुते दुर्गे च श्रीविक्रमे ॥ श्रीमच्छ्री जिन हंससू रिसुगुरोः प्राप्तं पदं वाक्यत स्तेऽमी श्रीजिनचन्द्रसूरिगुरवो नन्दन्तु भट्टारकाः ॥ १४॥ तत्पट्टे ७३ मा श्री जिनचन्द्रसूरिजी भए, तिके गोलछा गोत्रीय, संवत् १९३५ मिति माघसुद ११ के दिन आचार्यपद प्राप्तहोकर विचरते भए, बहुतसा धर्मका उद्योत किया और सौम्यगुणधारी बहोत खेत्रो मे विहार करनेवाला भया, संवत् १९५६ काति वदि ५ को अणशण आराधना करके समाधि सें कालधर्म प्राप्त होकर स्वर्ग गए ॥ ७३ ॥ इनोंकेस मे श्रीकीर्त्तिसारजी सं० १९३६ आ For Private And Personal Use Only

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