Book Title: Jinduttasuri Charitram Uttararddha
Author(s): Jinduttsuri Gyanbhandar
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar
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५३६ अपवादादिकका बहुतसा वचाव कियाहै, गुर्वाज्ञालोप, गच्छमर्यादा भंगादिककाभी बचाव कियाहै, परन्तु ऐसे कुत्सितपुरुषोंका अपवाद उत्सूत्रप्ररूपणादिकका ढकणा. या पक्षपात करणा क्याबुद्धिमान् आत्महितैषीका कामहै, अपितु कदापि नहिं, और विजयप्रशस्तिसारादिकमें लेखकने जो खंडण दियाहै प्रायें मिथ्याहीहै, कारणके पूर्वोक्त कुत्सित पुरुषोंने तथातदाश्रितपुरुषोंने श्रीमान् विजयदानसरिजी, श्रीमान् विजयहीरसूरिजी श्रीमान् विजयसेन सरिजीके नामसे या गुणवर्णन या चरित्रवर्णन या उत्सूत्रआगमाचरणाविरुद्ध पक्षपोषणके मिससें, यामहिमावर्णन, या पक्षपात स्थित्यादिक पोषणेके लिये, उण महान् पुरुषोंका नाम शाखसंशोधन रचनास्त्री. कारजीर्णोधृतादिमिसके द्वारा अपना पक्ष याने व्यसन पोषण कियाहै, अर्थात्, प्रश्नोत्तर वृत्ति प्रकरण चरित्र काव्य रास बोलादिक नवीनवनायेगये, और अपनी तथा नवीन बनायेहुवे ग्रन्थोंकी प्रमाणिकता प्रतिष्ठा प्राप्तकरनेकेलिये, उनमहान् पुरुषोंके परोक्षकालमें या विद्यमानकालमें यथासंभव संवत्सरादि युक्तकर श्रीविजयदानसूरिजी श्रीविजयहीरसरिजी श्रीविजयसेनसूरिजी आज्ञांकितनाम शाखसंशोधन रचना स्वीकारजीर्णग्रंथोद्धृतादि विशेपण देके, प्रच्छन्न याने गुप्तपणे संग्रहकरके, रख्खे और मायावृत्तिसें धीरे धीरे सर्वत्र जीर्णज्ञानभंडारादिकमें उत्सूत्रमतपोषक ग्रन्थादिकका प्रचार करदिया वादमें कालपायके पुष्ट होगये, और पूर्वोक्त प्रकारके ग्रन्थोंका आधार लेके, फिर विशेषपणे उत्सूत्र प्ररूपणादिक करनेलगे, तबसें निषेधविधानरूपविचार खरतरतपोटमतियांका स
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