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५३७ दाहीके लिये होगया, सो अभीतक चालुहै, बडाहि खेदजनकहै कि, नजाणे इस महान् कदाग्रहका कब अंत आवेगा यहतो ज्ञानी महाराजहिजाणेहै और तपागच्छकी आगमाचरणायुक्त शुद्ध समाचारीकों अस्तव्यस्तकरनेवाले खासतपोटमतिहिहै, और इस समय उनहि तपोटमतियोंने खास तपागच्छके नामका ठेका लेरक्खाहै, और असली खरतरतपांका कोई विरोध नहींहै, संवत् तेरेसैमें श्राद्ध विधिकर्त्ताने आंचलके देखादेखीसें सामायिक विधिमें प्रथम इरियावही लिखदीवीहै वादमें संवत् १६१३में धर्मसागरआश्रित अनेक विषमवाद प्ररूपणा भइहै, जैसेकि अभयदेवसूरि नवांगवृत्ति कर्ता खरतरगच्छमे नहिं हुवे १ पर्वतिथी घटेवधे नहिं २ अधिक मासकी गिणती नहिं ३ अधिक मासमे पयूषण पर्व हूवे नहिं ४ चतुर्दशीका क्षय होणेसें १३ का क्षय करणा ५ पर्वतिथीकी वृद्धि होणेसे पहली ६० घडी तिथीको छोडके । दूसरीमें ब्रत पचक्खाण उपवासादिकरणा ६ पर्व तिथीकी वृद्धि होणेसें आसपासकी तिथी, अपर्वतिथी, दोकरणा ७ पर्वतिथी का क्षय होणेसे पहिलेकी अपर्व तिथीका क्षय करणा ८ तरुणस्त्री मूलबिंबकी पूजाकरे अच्छेरा कल्याणक नहिं ९ गर्भापहार गर्भसंक्रमण कल्याणक नहिं १० सामायिकमें प्रथम इरियावही करणा ११ इरियावही करके प्रतिदिन सामायिककापारणा १२ अपर्वतिथीमें पौषधचतुर्विध समायिक सहित होवे १३ पौषधमें पांचवार देववंदन करणा १४ तिविहार पञ्चक्खाणमें कच्चा जलपानकरण १५ सांगरीकादि विदल नहि १६ आचाम्लमें दोद्रव्यकी संख्या नहि, लवणादि अनेक द्रव्योंका
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