________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
५४५
१६६० आसाउलि पुरमें श्रीजिनचन्द्रसूरिये वाचकपद दीया, संवत् १६७४, फागुण सुदि ७ सातमके दिन मेडता नगरमें चोपडा गोत्रीय, साह आसकरणने महोछवकिया, सूरिपदकों प्राप्त भए, श्रीजिनराजसरि नाम हुवा, फेर श्रीजिनराजसूरिजी, लोद्रवपुर पत्तनके विषे श्रीजेशलमेरनिवासी, भणशालीथारूसाहनें जीर्णोद्धार कराया श्रीचिंतामणि पार्श्वनाथ वगेरे प्रतिमा ओर ६ चैत्यकी १६७५ मिगसर सुदि १२ को ओर १६९३ मे प्रतिष्ठा करी, तथा संवत् १६७५,गुजराती वैशाख सुदि १३ त्रयोदशी शुक्रवारके दिन श्रीराजनगरनिवासी पोरवालज्ञातीय संघपति सदा सोमजीका पुत्र रूपजीका परंपरागतनें बनवाया, श्रीशचंजय ऊपर चतुर्मुखदेवालयमें श्रीऋषभादि चोमुखजिनकों आदिलेके (५०१) पांचसे एक प्रतिमाकी प्रतिष्ठा करी, तथा फेर भानुवड ग्रामके विष साह चांपसीका बनाया हुवा देवघरमंडन अमृतश्रावी अमीझरा श्रीपार्श्वनाथ प्रमुख ८० अशीति विबोकी प्रतिष्ठा करी, तथा मेडता नगरमें गणधर चोपडा गोत्रीय संघपति श्रीआशकरण साहने करवाया श्रीशान्तिनाथस्वामीके चैत्यकी प्रतिष्ठा करी, एकदा राजनरमे व्याख्यान वांचते थे तक जेसलमेरमे थाहरुसाभणसालीकालकरके देवहोके वांदणेकों आया अदृश्यरूपसे, आचार्यने धर्मलाभ दिया इसतरेसें राजनगरादि अनेक नगरोंके विषे श्रीजिनचैत्योंकी प्रतिष्ठा करी, इसमाफक श्रीजिनशासनोन्नतिकारक, अंबिकाप्रदत्तवरधारक, युगवरपदभृत् तथा घंघाणी नगरमें चिरकालकी जमीनमें रही प्रतिमाकों प्रसस्तीका अक्षर देखके प्रगटकारक, इत्यादि अनेक प्रकारसें सद्धर्मोद्योतकर्ता, महाप्रतापी, समस्ततके, व्याकरण, छंद,
For Private And Personal Use Only