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साथ वीनतिकरके रका, चोमासा करवाया, तब उहां बहुतसा प्रतिमा उत्थापक मत खंडन किया, तब बहुत लोक सद्धर्मानुयायी हुवे, बहुतश्वेताम्बर जैन धर्मकी वृद्धि और प्रशंसा भइ, फेर तिस नगरके नजीक उद्यानमें राजा वछराजकों उपदेश देकर, श्रीजिन कुशलसूरिजी महाराजका थुंभ बनवाया सं० १८५२ में श्रीसिद्धाचलजीकी यात्रा करी उहां परपक्षियोंने उपद्रवकीया सो सांतिकरके यात्रा करते विचरते गुर्जरसै मालव देशमें विचरके दक्षणमे विचरे उहांसे विहार करके सर्वतीर्थोंकी यात्रा करते, दक्षिणदेशमें श्रीअंतरिक्षपार्श्वनाथ की यात्राकर, सुरत पधारे उहां श्रीजिनचन्द्रसूरिजी सुरत बंदर में, संवत् १८५६ जेठ सुदि ३ तीजकीं स्वर्ग गए ॥ ६९ ॥ श्रीसूरते श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः प्रदत्तपट्टाजित सर्वसूरिभिः ।
गुणान्वितारंजितभूरिसूरयो
जाताश्च ते श्रीजिनहर्षसूरयः ॥ ११ ॥
तत्पट्टे ७० मा श्रीजिनहर्ष सूरिभए, तिके बालेवा गामवासी, मीठडिया वोहरा गोत्रीय, साहतिलोकचंद्र पिता, तारादेवी माता, हीरचंद्र मूलनाम, संवत् १८४१ आउ गाममे दीक्षा, हितरंग दीक्षानाम, संवत् १८५६ जेठ सुदि १५ पूर्णमासीके दिन, श्रीसूरत बंदर में श्रीसंघका किया उच्छव सहित सूरिपदमें प्राप्त भए, तब तिसी नगरमें, श्रीसंघें श्रीअजितनाथ स्वामीका चैत्य बिंबोकी प्रतिष्ठा कराई, तथा संवत् १८६० अक्षयतृतीयाके दिन देवी कोटके श्रीसंघ बनवाया मंदर में १५० बिंबोंकी प्रतिष्ठा करी,
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