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उपाध्यायादि संसेवितचरणकमल, ऐसे श्रीजिनभक्तिसूरिजी क च्छदेशमंडन श्रीमांडवी बंदरके विषे संवत् १८०४ जेष्ठ सुदि ४ चोथके दिन स्वर्गगए, उस रात्रिमें अग्निसंस्कार भूमिके विषे देवतानें दीपमाला करी, ऐसे प्रभावीक गुरुमहाराज भए ॥ ६७ ॥ तत्पट्टे ६८ मा श्रीजिनलाभसूरिजी भए, तिके वीकानेरके रहनेवाले, बोथरागोत्रीय, साहपचायणदास पिता, पद्मादेवी माता, संवत् १७७४, श्रावण सुदि ५ पंचमी के दिन, वायेउ गामके विषे जन्म, लालचन्द्र मूलनाम, संवत् १७८९, जेष्ठ सुदि ६ छट्टके दिन जेसलमेर में दीक्षा, लक्ष्मीलाभ दीक्षानाम, संवत् १८०४, जेष्ठ सुदि ५ पंचमी के दिन श्रीकच्छमांडवीबंदर में छाजेडगोत्रीय, साह भोजराजकृत नंदीमहोच्छव करके पदस्थापनभये, फेर जेसलमेर वीकानेर आदि अनेक नगरोंके विषे विहार करते हुवे संवत् १८१८ में जेठ वदि ५ ने ७५ साधुसहित श्रीगोडीपार्श्वनाथ यात्रा करी, तथा धूलेवा यात्रा करी, वाद सं० १८२१ फाल्गन शुक्ल प्रतिपदाको ८५ मुनि साथ श्री अर्बुदाचल यात्रा करी वाद घाणेराव सादडी नामके दो नगर में चोपडा वखतसाहादिकृत महोत्सवसे आके उप द्रवकरणको मिले परपक्षियोकों स्वज्ञानादि बलसै पराजय करके विजय वादिवजवायै तदनंतर उसी देशमें श्रीराणकपुरादि पंचarathi यात्रा करके वेनातट मेदनीतटरूप नगर जयपुर उदयपुरादि नगरोंमें विहार करते सं० १८२५ वैशाख पौर्णमासीकों ८८ साधुसाथ श्रीघुलेवागढमंडन श्रीऋषभदेवजीकेसरियानाथ' जीकी यात्रा करी वाद पान्थिका साचोर राधनपुरादिकमें विहार
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