Book Title: Jinduttasuri Charitram Uttararddha
Author(s): Jinduttsuri Gyanbhandar
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

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Page 189
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४६ अलंकार, कोश, काव्यादिक, विविध शास्त्रपारीण, नैषधकाव्यपर, जैनराजीटीका प्रमुख, अनेक ग्रन्थरचना करणेवाले, श्रीबृहत् खरवरगच्छनायक श्रीजिनराजसरि संवत् १६९९ आषाढ सुदि ९ नवमीके दिन पाटणमें खर्ग गए । इनोंकेवारे संवत् १६८६, जिनसागर सरिसे लघु आचार्य खरतरशाखा निकली, यह ८ मा गच्छमेद भया, ६३ तत्पट्टे ६४ मा श्रीजिनरत्नसरिजी भए, तिके सेरूणा गाम निवासी लूणीया गोत्रीय, साह तिलोकसी पिता, तारादेवी माता, रूपचन्द्र मूलनाम, निर्मलवैराग्यप्राप्तहोकर मातासहित दीक्षा ग्रहणकरी, फेर संवत् १६९९ आषाढ सुदि ७ सातमके दिन श्रीजिनराजसूरिजी महाराजनें स्वहस्तसें सूरिमंत्र दिया, मूरिपद प्राप्त होकर, फेर उत्कृष्ट शुद्ध चारित्र पात्र चूडामणि युगवर भये, और श्रीजिनरत्नभूरिजी संवत् १७११ श्रावण बदि ७ सातमके दिन आगरा नगरमें स्वर्ग गए ॥ ६४ ॥ संवत् १७०० में उपाध्याय श्रीरंगविजय गणिसें, रंगविजयखरतर शाखा निकली, यह ९ मा गच्छ भेदभया, फेर तिस वखतमें इसीहि शाखामांयसें, श्रीसारउपाध्यायसें, श्रीसारीय खरतरशाखा निकली, यह १० मा गच्छभेद भया ॥ तत्पट्टे ६५ मा श्रीजिनचन्द्रसूरिजी भए, तिके गणधरचोपडा गोत्रीय, साह सहसकरण पिता, सुपियारदेवी माता, हेमराज मूलनाम, हर्षलाभ दीक्षानाम, संवत् १७११ भाद्रवा सुदि १० दशमीके दिन, श्रीराजनगरमें, नाहट्टा गोत्रीय साह जयमल्ल तेजसी, माता-कस्तूरबाईने आचार्य पदका महोछव किया, पीछे श्रीगुरूमहाराज योधपुरवासी साह मनोहरदासने निकाला संघके साथ For Private And Personal Use Only

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