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५४१ मीरु ब्रह्मचर्यनिष्ठ शुद्ध प्ररूपकनें गीतार्थादिकनें गछादिकनो भार आपवो ३१ इत्यादिक अनेक शास्त्राधारे गछमर्यादा संरक्षक बोल परंपरा देखीजावेहै, इसलिये शास्त्राधारे खरतरतपा गछका विरोध नहिं संभवेंहै, यह तोतपोटमत का विसंवाद संभवेहै, इसलिये खरतरतपा परमस्नेही आपसमे संभवेहै, यहांपर कोइ कहेता हैं, कि जैसा आगम आचरणा संबंधि तपोट लुपक ढुंढक-बाईस टोला तेरापंथी वगेराका विसंवाद है, इसीतरे उपकेशगछ वडगछ चित्रवालगछ नागेन्द्रगछतपागछ वगेरेका खरतर गछके साथ प्ररूपणादिविसंवाद विरोधादिक कुछनकुछ किसीतरेका जरूरहि होना चाहिये अन्यथा अलग अलग गछौंका होना कैसा संभवे, तो फेरतपोटमत वा ऋषिमतियांकाहि विरोधविसंवादादिकहै, उद्योतन सरि संतानीय मूलगछ तत्सप्रदायका नहिं, यह कैसा संभवे, सत्यम्, हे
देवानुप्रिय यह अनुपासित गुरुका वचनहै, अथवा यथार्थ अज्ञात सिद्धान्तार्थ रहस्यहैं उनोंका यह कहेनाहै, औरोंका नहिं, क्युंकि इस विषयकी सूचनाऊपरहि करीहै भिन्न भिन्न गछौंका नाम और पाठ परंपरा होणेसें केवल नाममात्रहि भेदहै, परमार्थसे तो किसी तरेका भेद नहिंहै, और शास्त्रधार वगेरासेंभि कोइ भेद मालुम नहिं होवेहै, इसलिये हमारे श्रीउद्योतनसूरिजीके संप्रदायियोंका आपसमें प्रायें किसीतरेका विरोध विसंवाद ईर्षी मत्सर उत्सूत्र प्ररूपणाहीनाधिक प्ररूपणादि भेद नहिंहै, तो हमारे आपसमें भेदादिकका कारणहि कौनसाहै, सो बतलावें, जिससे हमारे आपसमें विरोध विसंवादादिक होवे, और हमनेश्रीसुधर्मोद्योतनसरि
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