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सर्व अन्यगच्छीय शास्त्ररचयिता आचार्योंकी अपेक्षासें तो हेमाचार्यमलयगिर्यादिके सिवाय बहुतसे शास्त्रप्राये खरतराचार्योंके रचेहवे संभवे है, और इस पंचमआरेमें बहुत जैनधर्मप्रभावक आचार्य हूवे हैं औरभी होगा परन्तु इस वर्तमान कालमें जैनश्वेतांवरजाति ३वा ४ देखनेमे स्थोकबन्ध आवे हैं और इनके सिवाय प्रायें विशेष श्वेताम्बर जैनजातिबहुव्यापक सर्वत्र नहिं दिखतीहै, १ श्रीमाल २ ओसवाल ३ पोरवाल ४ हुंबड इन जातियोंके सिवाय श्वेताम्बर धर्ममे प्रवृत्ति करती हुई विशेष करके नहिं देखतें हैं परन्तु अग्रोहा नगरकों श्रीलोहित्याचार्यने प्रतिबोधा, अग्रवाल भये और श्रीजयपुरराजकी सीमाके एकपरगणेमे श्रीसिद्धसेनाचार्यने ८६ गामोंको प्रतिबोधे, खंडेलवाल भये, और वधेराके राजादिलोक श्रीजिनवल्लभसूरिजीसें प्रतिबोध पाकर जैन भये सोवघेरवाल उपजाति वाघडी भये, श्रीमानतुंगाचार्यके प्रतिबोधसें भूपति सिंहराजा जैनधर्मधारक भया उसका हूंबड गौत्र भया यह जातिय प्रायें श्वेताम्बराचार्यों की प्रतिबोधी भइ संभवेहै निश्चयसें तो तत्वज्ञानीजाणे,
और इन जातियोमें उभयधर्म मंन्तव्यताहै अर्थात् १ श्वेताम्बर २ दिगंबर यह दोनो धर्मों मानते हैं और महाजनवंशमुक्तावलीमें लिखतें हैं कि इस जैनधर्मके लाखोंश्रावकवनानेवाले पडते कालमें उद्योतकारी, प्रथम सवालाख घर १ लाख ८४ हजार राजपूतोंके महाजनवंशके १८ गोत्र थापनेवाले, श्रीपार्श्वनाथस्वामीके छठे पाटधारी श्रीरत्नप्रभसरिः भये वादपर गोत्र हजारो घर महाजन बनानेवाले, श्रीमहावीरस्वामीसें ४३ में पट्टधारी श्रीजिनवल्लभसरिः,
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